रविवार, 19 अप्रैल 2015

= ११५ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
करुणा ~
सो कुछ हम थैं ना भया, जा पर रीझे राम ।
दादू इस संसार में, हम आये बेकाम ॥२९॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हरि - स्मरण, सत्संगति जो सुकृत हैं, जिनके करने से प्रभु प्रसन्न होते हैं, सो तो हमारे से हुआ नहीं क्योंकि जड़ बुद्धि होने से किया नहीं ? इस लोक में हमारा मनुष्य - जन्म वृथा ही जा रहा है ॥२९॥
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क्या मुँह ले हँस बोलिये, दादू दीजे रोइ ।
जन्म अमोलक आपना, चले अकारथ खोइ ॥३०॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के सामने कौन सा मुँह लेकर दिखलाओगे ? उस परमेश्वर के सम्मुख कैसे हँसकर बोलोगे ? ऐसे कौनसे तुम्हारे सत्कार्य हैं ? तुम्हें परमेश्वर के समक्ष में अपने कुकृत्यों को याद करके रोना ही पड़ेगा ! इस अमूल्य जन्म को शुभ कार्यों के बिना निरर्थक ही खोकर गँवाते हो ॥३०॥
(श्री दादूवाणी~मन का अंग)
चित्र सौजन्य ~ @मुक्ता अरोड़ा स्वरुप निश्चय

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