बुधवार, 27 मई 2015

= १८४ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
एक कहूँ तो दोइ हैं, दोइ कहूँ तो एक ।
यों दादू हैरान है, ज्यों है त्यों ही देख ॥
देख दीवाने ह्वै गए, दादू खरे सयान ।
वार पार कोई ना लहै, दादू है हैरान ॥
दादू करणहार जे कुछ किया, सोई हौं कर जाण ।
जे तूं चतुर सयाना जानराइ, तो याही परमाण ॥
दादू जिन मोहनि बाजी रची, सो तुम्ह पूछो जाइ ।
अनेक एक तैं क्यों किये, साहिब कहि समझाइ ॥
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साभार ~ Ramjibhai Jotaniya ~

आप सभी मेरे प्रिय आत्मीय मित्रों से मेरा हार्दिक निवेदन है की मेरे प्रश्न का उत्तर दे कर हमें संतुष्ट करें, दो शब्द में आपका सटीक उत्तर चाहिए ! परन्तु मित्रों आप सभी अपनी अभिव्यक्ति दें अवश्य ~:
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तुम हो अम्बर, मैं दिगंबर, भेद कैसा नाथ ?
मोक्ष हो तुम मुक्ति हूँ मैं ऐसा अपना साथ !
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है कौन सा वो तत्व जो सारे भुवन में व्याप्त है ?
ब्रह्माण्ड पूरा भी नहीं जिसके लिये पर्याप्त है ?
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है कौन सी वह शक्ति, मित्रों है कौन सा वह भेद ?
बस ध्यान ही जिसका मिटाता आपका सब खेद ?
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बिछुड़े हुओं का हृदय कैसे एक रहता है, अहो !
ये कौन से आधार के बल कष्ट सहते हैं, कहो ?
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क्या हेतु, जो मकरंद पर हैं भ्रमर मोहित हो रहे ?
क्यों भूल अपने को सभी सुधि-बुधि अपनी खो रहे ?
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आकाश में, जल में, हवा में, विपिन में क्या बाग में,
घर में, हृदय में, गाँव में, तरु में तथैव तड़ाग में,
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है कौन सी यह शक्ति जो है एक सी रहती सदा,
जो है जुदा करके मिलाती, मिलाकर करती है जुदा ?
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यह देखिए, अरविन्द से शिशुवृंद कैसे सो रहे,
है नेत्र माता के इन्हें लख तृप्त कैसे हो रहे,
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क्यों खेलना, सोना, रुदन करना विहँसना आदि सब,
देता अपरिमित हर्ष उसको देखती वह इन्हें जब ?
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यह वायु चलती वेग से, ये देखिए तरुवर झुके,
हैं आज अपनी पत्तियों में हर्ष से जाते लुके,
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क्यों शोर करती है नदी, हो भीत पारावर से,
वह जा रही उस ओर क्यों ? एकान्त सारी धार से ?
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चैतन्य को जड़ कर दिया, जड़ को किया चैतन्य है,
बस प्रेम की अद्भुत, अलौकिक उस प्रभा को धन्य है,
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क्यों, कौन सा है वह नियम, जिससे कि चालित है मही ?
वह तो वही है, जो सदा ही दीखता है सब कहीं। ॐ

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