मंगलवार, 31 जुलाई 2012

= स्मरण का अँग २ =(११०/१)

॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*पुरुष प्रकाशित*
*दादू भावै तहाँ छिपाइए, साच न छाना होइ ।*
*शेष रसातल गगन धू, प्रगट कहिये सोइ ॥११०॥ 
हे जिज्ञासुओ ! शेष जी पाताल में भजन करते हैं और ध्रुव जी आकाश में परमेश्वर की भक्ति करते हैं, किन्तु यह वार्ता समस्त लोकों में प्रसिद्ध है । इससे स्पष्ट है कि सत्य को चाहे जहाँ छिपाओ, परन्तु वह प्रकट होकर रहेगा । शेष जी और ध्रुव जी के आख्यान से यह अभिप्राय है कि दोनों भक्तों में स्थान से तो अन्तर है, एक आकाश में है और एक पाताल में है, परन्तु भक्ति में अन्तर नहीं है । दोनों भक्त समान प्रसिद्ध हैं, क्योंकि भगवत् तो अविनाशी और एकरस हैं ॥११०॥ 
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*दादू कहाँ था नारद मुनिजना, कहाँ भक्त प्रहलाद ।* 
*परगट तीनों लोक में, सकल पुकारैं साध ॥१११॥* 
हे जिज्ञासुओ ! नारद मुनि किस कुल में हुए थे ? अर्थात् दासी पुत्र थे और अब कहाँ हैं ? त्रिलोकी में गमन करने की उनकी सदैव शक्ति है । इसी प्रकार प्रह्लाद राक्षस कुल में हुआ । उसकी ईश्वर भक्ति-अद्वितीय थी, ऐसी कथा है । किन्तु ये तीनों लोकों में सदा विख्यात हैं और समस्त साधु-महात्मा उनके गुणों का वर्णन करते हैं ॥१११॥
(क्रमशः)

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