शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

= स्मरण का अँग २ =(११७-८)


॥ दादूराम-सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"* 
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज 
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*= स्मरण का अंग - २ =*
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*सुमिरण लाम्बी रस*
*सुमिरण का शंसा रह्या, पछितावा मन मांहि ।* 
*दादू मीठा राम रस, सगला पिया नांहि ॥११७॥* 
*दादू जैसा नाम था, तैसा लीया नांहि ।*
*हौंस रही यहु जीव में, पछितावा मन मांहि ॥११८॥* 
सतगुरु देव कहते हैं कि हे जिज्ञासुओं ! सच्चे भक्त के अन्त:करण में राम का स्मरण करने का पश्चात्ताप बना रहता है कि मैंने जैसा प्रभु का नाम था, वैसा मैंने अखंड स्मरण नहीं किया ? क्योंकि राम-नाम के स्मरण का रस अत्यन्त मीठा है, जिससे भक्तों की यह इच्छा बनी रहती है कि इस रस को बारम्बार पीते रहें । परन्तु जैसा उत्तम नाम था, वैसी उत्कण्ठा से, मैंने इस नाम का आस्वादन नहीं प्राप्त किया । सच्चे भक्तों के हृदय में यही "साल" कहिए, दु:ख बना रहता है ॥११७-११८॥

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