रविवार, 19 जनवरी 2014

दादू स्वाद लाग संसार सब १२/४०

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*माया का अंग १२/४०*
*दादू स्वाद लाग संसार सब, देखत परलय जाइ ।* 
* इन्द्रि स्वारथ साच तज, सबै बँघाणे आइ ॥४०॥* 
प्रा० - दृष्टांत - 
बुधि करि चारों वश किये, धर्म ध्वजा बल जास । 
साह रीझ सर्वस्व दिया, सु कहु जगजीवनदास ॥१०॥ 
एक नगर में एक सद्गृस्थ थे । उनकी धर्मपत्नी अधिक सुन्दर तथा पतिव्रता थी । एक समय उसके पति विदेश गये थे । नगर के चार युवक उसकी सुन्दरता से आकर्षित थे - एक नगर सेठ का पुत्र । दूसरा नगर कोतवाल का पुत्र । तीसरा राजा के प्रधान मंत्री का पुत्र और चोथा राजकुमार । ये चारों ही उक्त बाई से मिलना चाहते थे और बाई की दासी से बारंबार कहते रहते थे । दासी ने उक्त चारों की बात बाईजी को सुनाई । 
.
तब बाईजी ने उनका मुख बन्द करने का विचार किया और अपने बड़े कमरे के चार कोणों में चार बड़े संदूक रखवा दिये और दासी को कहा - आज रात में आने का चारों युनकों को कह आ । सेठ के पुत्र को रात्रि की पहली पहर में । कोतवाल के पुत्र को रात्रि की दूसरी पहर में । मंत्री के पुत्र को तीसरी पहर में और राजकुमार को चौथी पहर में । आने को कह आ और प्रातः अरुणोदय से पहले ही तू स्वयं द्वार के कपाट खटखटाना और पु़छना कौन है ? फिर उत्तर भी स्वयं ही देना घर का स्वामी है । उक्त प्रकार दासी को सिखा दिया । दासी सबको कह आई ।
बाई ने कमरे के बीच में चौकी बिछाकर उस पर श्रीमद् भागवत् रख दी । पास ही तुलसी का वृक्ष रखा और घृत दीपक जलाकर पाठ करने बैठी फिर कु़छ रात्रि जाते ही सेठ के पुत्र ने आकर कपाट खटखटाये । दासी ने पू़छा कौन ? उत्तर मिला - सेठ का पुत्र । दासी ने कपाट खोल दिये सेठ का पुत्र आकर बाई के सामने बैठ गया और सोचा - पाठ पूरा होने पर बात करुंगा । इतने में दूसरा पहर लग गया । द्वार के कपाट खटखटाये । दासी ने पू़छा कौन ? उत्तर मिला - कोतवाल का पुत्र । यह सुनते ही सेठ का पुत्र घबरा कर बोला - मुझे कही छिपाकर ही कपाट खोलो । 
फिर बाई ने उसे एक सन्दूक में बन्द करके ताला लगा दिया और चाबी अपने पास रखली फिर कपाट खोला । कोतवाल का पुत्र आकर बैठ गया और सोचा - इसका पाठ पूरा हे जाय तब बात करुंगा इतने में तीसरा पहर लगा और द्वार का कपाट खटखटाया । दासी ने पू़छा कौन है ? उत्तर मिला - मंत्री का पुत्र । यह सुनते ही कोतवाल का पुत्र घबरा कर बोला - पहले मुझे कही छिपाओ फिर कपाट खोलो । 
उसे दूसरे सन्दूक में बन्द करके ताला लगा दिया और चाबी अपने पास रख ली । फिर कपाट खोला । तब मंत्री पुत्र आया और बाई के सामने बैठ गया और सोचा - पाठ करके बात करेगी इतने में ही चौथा पहर लगा और द्वार के कपाट खटखटाये । दासी ने पू़छा - कौन है ? उत्तर मिला - राजकुमार । यह सुनते ही मंत्री पुत्र घबरा कर बोला - पहले मुझे कहीं छिपाओ फिर कपाट खोलो । 
तब उसे तीसरे संदूक में बन्द करके ताला लगा दिया और पाठ करते देखकर कु़छ बैठा था कि दासी ने जाकर द्वार के कपाट खटखटाये और पू़छा - कौन है ? उत्तर भी दासी ने दिया । घर का स्वामी । यह सुनते ही राजकुमार घबराया कि वह महान् वीर है, आते ही मेरा मस्तक काट देगा । अतः बोला - पहले मुझ कहीं छिपाओ । फिर कपाट खोलो - बाई ने उसे भी चौथे सन्दूक में बन्द करके ताला लगा दिया और चाबी अपने पास रखली । 
फिर अपने सब कार्यों से निवृत्त होकर बाई और दासी ने पुरषों का वेश पहनकर चारों सन्दूकों को बाजार में ले जाकर बाली लगाई - प्रथम सन्दूक के २५ हजार । द्वितीय के ५० हजार । तीसरे के ७५ हजार चौथे के एक लाख । नगर में उक्त चारों युवकों के परिवार वाले चारों युवकों को खोज रहे थे किन्तु कु़छ पता नहीं लग रहा था, इधर सन्दूकों के पास भी सेठ लोग और नगर के बड़े - २ मानव आये हुये थे । बुद्धिमान नगर सेठ ने यह सोचकर कि लड़के मिल नहीं रहे है कहीं इन सन्दूकों में हों तो एक सन्दूक खरीदने से पता लग ही जायगा । उसने २५ हजार वाला खरीदा और खोला तो सेठ का पुत्र उसमें निकला । 
यह सुनकर राजा, राज मंत्री और कोतवाल भी वहाँ पहुँचे । फिर राजा की आज्ञा से व्यापारी के कथनानुसार दूसरा संदूक कोतवाल ने ५० हजार में खरीद कर खोला तो कोतवाल का पुत्र निकला । फिर तो ७५ हजार वाला मंत्री ने और एक लाख वाला राजा ने खरीदा उनमें मंत्री पुत्र और राजकुमार ही निकले । फिर राजा उक्त बाई के बुद्धिबल पर अति प्रसन्न हुये और प्रजा में उसकी धर्म ध्वजा फहराने लगी अर्थात उसके धर्म की अति महिमा होने लगी । और उक्त सर्वस्व(सब धन) राजा ने बिना कर आदि लिये ही उसे दे दिया । इस दृष्टांत का उक्त दोहा दादूजी के शिष्य जगजीवन दौसा वालों का रचित है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें