🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*साँच का अंग १३/४०.४८*
.
*पोथी अपना पिंड कर, हरि यश मांहि लेख ।*
*पंडित अपना प्राण कर, दादू कथहु अलेख ॥४०॥*
दृष्टांत -
राम चरित द्विज बांचिया, राम हनू सुन नेम ।
द्रव्य दिया दर्शन दिया, द्विज के उपजा क्षेम ॥६॥
एक ब्राह्मण ने रामचन्द्रजी तथा हनुमानजी को प्रतिदिन रामचरित सुनाने का नियम धारण करके सुनाना प्रारम्भ कर दिया और दीर्घकाल तक सुनाता ही रहा तब हनुमानजी ने और रामचन्द्रजी ने उसे दर्शन भी दिया और द्रव्य भी दिया । उक्त ४० की साखी के अर्थ के समान उक्त ब्राह्मण ने जैसे सुनाया था वैसे ही कोई अलेख - मन वाणी के अविषय परब्रह्म का यश कथन करता है तो उसका योग - क्षेम भी प्रभु करते हैं और परब्रह्म का साक्षात्कार भी उसे होता है । अतः दादू कथहु अलेख ऐसे ही कथन करें ।
.
*दादू हिन्दू मारग कहैं हमारा, तुरक कहैं रह मेरी ।*
*कहां पंथ है कहो अलह का, तुम तो ऐसी हेरी ॥४८॥*
दृष्टांत -
एक हिन्दु इक औलिया, दोऊ ही गलतान ।
जल मिल जल फुहार भरे, तुरक तऊ अभिमान ॥७॥
एक हिन्दू साधक और एक औलिया दोनों ईश्वर भक्ति में निमग्न होते है तो दोनों ही ईश्वर को प्राप्त होते है । जैसे जल के फुहारे मे भरा हुआ जल छोटे - छोटे कण हो जाने पर भी मिलकर जल हो जाता है तब क्या वह जल नहीं रहता अर्थात् जल ही रहता है । वैसे ही दोनों ही ईश्वर की सृष्टी हैं किन्तु फिर भी तुरकों को अपना भिन्न होने का अभिमान रहता ही है कि हम तो अलग ही हैं । सोई उक्त ४५ की साखी में कहा है - हिन्दू अपने मार्ग की बात कहते हैं और तुरक अपने मार्ग की बात कहते हैं किन्तु उक्त पक्षपात पूर्ण लड़ाई झगड़ों वाले मार्ग में ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग कहां है ? अर्थात् नहीं है । किन्तु दोनों ने ही पक्षपात वाली रीति को ही प्रभु प्राप्ति का साधन विचार लिया । प्रभु तो निष्पक्ष को ही मिलते हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें