शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।
सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥२३॥
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वह परमेश्‍वर सभी की उत्पत्ति करने वाले हैं और ऐसे सर्व - शक्तिवान् हैं कि जो सेवक बनकर चींटी से लेकर हाथी पर्यन्त अथवा देव, दानव, किन्नर, मनुष्य, तिर्यक्, सभी को आवश्यकतानुसार पदार्थ पूर रहा है और जिसके सामने सभी अपना हाथ फैलाते हैं, ऐसे उस समर्थ राम का विश्‍वास धारण करके यह जीव उसका स्मरण करे, तभी इसका जन्म सार्थक है ॥२३॥

समर्थ साक्षीभूत
धनि धनि साहिब तू बड़ा, कौन अनुपम रीत ।
सकल लोक सिर सांइयां, ह्वै कर रह्या अतीत ॥२४॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि दादूदयाल महाराज कहते हैं कि हे साहिब परमेश्‍वर ! आपको धन्य हो, धन्य हो ! आप सर्व के शिरोमणि होकर सबकी प्रतिपालना करते हो । आप गुण विकारों से रहित, सबके अन्दर निवास करते हुए, गुणातीत होकर रह रहे हो । इस आपकी समर्थता को और उदारता को आपके विश्‍वासी अनन्य भक्त ही जानते हैं ॥२४॥
(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)

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