शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015


॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
https://youtu.be/hwH6YxfGNx8
१७७. भयमान विनती । रंगताल
राम कृपा कर होहु दयाला, दर्शन देहु करहु प्रतिपाला ॥ टेक ॥ 
बालक दूध न देइ माता, तो वह क्यों कर जीवै विधाता ॥ १ ॥ 
गुण औगुण हरि कुछ न विचारै, अंतर हेत प्रीति कर पालै ॥ २ ॥ 
अपणो जान करै प्रतिपाला, नैन निकट उर धरै गोपाला ॥ ३ ॥ 
दादू कहै नहीं वश मेरा, तूँ माता मैं बालक तेरा ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव, इसमें भयत्रस्त विनती कर रहे हैं कि हे राम ! दयामूर्ति दयालु, अब हमारे ऊपर कृपा करो । हमें अपने स्वरूप का दर्शन देकर हमारा प्रतिपालन करिये । हे प्रभु ! शिशु बच्चे को यदि माता दूध नहीं पिलावै, तो वह बच्चा कैसे जी सकता है ? इस प्रकार हम तो आपके छोटे बच्चे हैं । आप ही हमको अपना दर्शन रूपी दूध पिलाइये । हे हरि ! आप तो हमारे माता रूप हैं, गुण - अवगुणों पर जैसे माता दृष्टि न देकर भी भीतर की प्रीति से बच्चे को पालती है, अपना पुत्र जानकर प्रतिपालना करती है । हे गोपाल ! इसी प्रकार आप भी हमको अपनी दृष्टि के सामने रखिए । हम तो आपके बालक हैं । हमारा आप पर कोई जोर नहीं चलता है, केवल रोने के सिवाय । आप ही हमारी रक्षा करने वाली माता रूप हो ।

हरि जननी मैं बालक तेरा काहिन औगुन बकसो मेरा ॥ टेक ॥ 
सुत अपराध करै दिन केते, जननी के चित आव न तेते ॥ १ ॥ 
कर गहि केश करै जो घाता, तोड न हेत उतारै माता ॥ २ ॥ 
कहै कबीर इक बुद्धि विचारी, बालक दुखी, दुखी महतारी ॥ ३ ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें