रविवार, 28 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(तृ. उ. ५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
.
*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ तृतीय उल्लास =*
.
*छप्पय*
*प्रथम अंग यम कहौं, दूसरौ नियम बताऊँ ।*
*त्रितिय सु आसन भेद, सुतौ सब तोहि सुनाऊँ ॥*
*चतुर्थ प्राणायाम, पंचम प्रत्याहारं ।*
*षष्ठसु सुनि धारणा, ध्यान सप्तम विस्तारं ॥*
*पुनि अष्टम अंग समाधि है, भिन्न-भिन्न समुझाइ हौं ।*
*अब सावधान ह्वै शिष्य सुनि, ते सब तोहि बताइ हौं ॥५॥*
(योग के उन आठों अंगों में) प्रथम अंग यम के विषय में तुम्हें बताऊँगा । दूसरे अंग नियम को भी समझाऊँगा । तीसरे अंग के रुप में आसनों के भेद आते हैं, उनके विषय में तुम्हें इतना कुछ बता दूँगा कि तुम उस बारे में सब कुछ समझ जाओ । योग का चौथा अंग है प्राणायाम, पाँचवा है प्रत्याहार, छठाँ अंग है धारणा, सातवाँ है ध्यान- इन सब के विषय में भी विस्तार से बताऊँगा । आठवाँ अंग है समाधि- इसके विषय में अलग से समझाऊँगा । अत: हे शिष्य ! अब तू एकाग्रचित होकर वह सब सुन, जो मैं तुझे बताने जा रहा हूँ ॥५॥
.
*दोहा*
*दश प्रकार के यम कहौं, दश प्रकार के नेम ।*
*उभय अंग१ पहिलै सधहिं, तब पीछे ह्वै क्षेम ॥६॥*
योग का प्रथम अंग ‘यम’ दस प्रकार का होता है, इसी तरह द्वितीय अंग ‘नियम’ भी दस प्रकार का होता है । इन दोनों अगों का वर्णन ही पहले करूँगा । क्योंकि इन दोनों अंगों की साधना से ही अव-शिष्ट छह अंगो की साधना भली प्रकार हो सकती है ॥६॥
{१- “योगांगानि वदन्ति षट्”(गोरक्षपद्धति), “हठस्य प्रथमांगत्वादासनं पूर्वमुच्यते” (हठयोगप्रदीपिका)- इन वचनों से हठयोग के ६ अंग ही हैं । परन्तु योग ही नहीं, किसी भी शास्त्र -विहित साधन के पूर्व यम-नियम मुख्य माने हुए हैं । इसी से श्रीसुन्दरदासजी ने साधारण साधकों के लिये इनको भी लिखा है । क्योंकि इनके बिना योगी और भोगी में क्या भेद रहेगा, और योग की सिद्धि कदापि सम्भव नहीं होगी । इसी से इन दोनों को अत्यावश्यक और अनिवार्य समझना चाहिये ।}
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें