सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

= विन्दु (२)६९ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ६९ =*
*= गरीबदासजी की विशेषतायें =*

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गरीबदासजी नारद के समान वीणा बजाकर उच्च स्वर से गंधर्व के समान सुन्दर राग से परमेश्वर के गुण गाया करते थे । उनको तुम्बक के समान तालादि का ज्ञान था । उनकी वाणी परम रसाल अमृत तुल्य होती थी । गरीबदासजी में अगणित दुर्लभ गुण आ गये थे ।
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आप दादूजी के ज्ञान द्वारा यौवन अवस्था में ही परम विरक्त हो गये थे । गरीबदासजी के छोटेभाई मसकीनदासजी भी राम में अपनी वृत्ति लीन रखते थे और दादूजी की बहुत सेवा करते थे । दादूजी के भाव विचार हृदय में धारण करके निर्गुण भक्ति करते थे । अद्वैत निरंजन ब्रह्म का स्मरण करते हुये ही मसकीनजी के आठों पहर व्यतीत होते थे । प्रभु-प्रेम, गुरु की प्रीति और हरि ध्यान में मसकीनजी गलतान रहते थे ।
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सभाकुमारी और रूपकुमारी ने भी शीलव्रत से रहते हुये निर्गुण ब्रह्म की भक्ती रूप साधना ही करके जन्म-मरण रूप व्याधि को नष्ट कर दिया था । वे दोनों रात्रि दिन अपने आत्म स्वरूप राम का ही स्मरण करती थीं । किसी अन्य देव को उपास्थ नहीं समझती थीं । ये चारों ही महान् साधक शूर थे । साधना द्वारा चारों ने ब्रह्म का साक्षात्कार किया था ।
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*= अहमदाबाद में नान्ही तथा हवाबाई का रहन-सहन =*
इधर अहमदाबाद में जाकर दादूजी की बड़ी बहिन हवा(हीरा) बाई तथा दादूजी की धर्म पत्नी नान्हीबाई भी रात-दिन निर्गुण ब्रह्म की भक्ति में ही लगी रहती थीं । जगत की नीति रीति तो इन दोनों को लेश मात्र भी रुचिकर नहीं होती थीं । इससे जगत् की रीति नीति में भाग नहीं लेकर केवल एक अद्वैत निरंजन ब्रह्म के ध्यान में ही रत्त रहती थीं ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ६९ समाप्तः ।
(क्रमशः)


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