शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2016

= गुरुदेव का अंग =(१/९४-६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥ 
"श्री दादू अनुभव वाणी" टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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= श्री गुरुदेव का अँग १ =
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घर - घर घट कोल्हू चले, अमी महारस जाइ ।
दादू गुरु के ज्ञान बिन, विषय हलाहल खाइ ॥९४॥
प्रत्येक स्थूल शरीर रूप घर के भीतर अन्त:करण में सँकल्प - विकल्प रूप कोल्हू चलता रहता है, उससे अमर बनाने वाला ब्रह्मानन्द रूप महा - रस, विषय पृथ्वी में पड़ कर दूषित हो रहा है, उसका अनुभव तो विषयों में भी होता है किन्तु अज्ञान - दोष से युक्त होने से मुक्ति रूप अमरत्व नहीं दे सकता । गुरु - ज्ञानोपदेश बिना उस महारस को न जानने के कारण प्राणी विषय रूप महाविष ही खाते हैं वो नारी - पुरुष की काम प्रधान क्रिया रूप कोल्हू चलता है, उससे वीर्य रूप महारस नष्ट होता रहता है ।
शिष्य प्रबोध
सद्गुरु शब्द उलँघ कर, जनि कोई शिष जाइ ।
दादू पग - पग काल है, जहां जाइ तहं खाइ ॥९५॥
९५ - ९९ में शिष्य को शिक्षा दे रहे हैं - निष्काम कर्म करने की आज्ञा रूप सद्गुरु शब्द को उल्लँघन करके किसी भी शिष्य को सकाम कर्मों में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए, यदि सकाम कर्म करेगा तो उसके लिए पद - पद पर काल स्थित है, वह जहां भी जायगा वहां ही उसे खा जायगा ।
सद्गुरु बरजे शिष करे, क्यों कर बँचे काल ।
दह दिशि देखत बह गया, पाणी फ़ोड़ी पाल ॥९६॥
जिन निषिद्ध कर्मों को सद्गुरु निषेध करते हैं, उन्हीं को यदि शिष्य करे तो फिर वह जन्म - मरण रूप कालचक्र से कैसे बचेगा ? जैसे बांध तोड़ने पर जल देखते २ ही बह जाता है वैसे ही शास्त्र व सँतों की बांधी हुई मर्यादा तोड़ने से उसका मन देखते २ ही दश इन्द्रियों के विषय रूप दशों दिशा में भाग जाता है ।
(क्रमशः)

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