सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

= ज्ञानसमुद्र(तृ. उ. ७-८) =

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स्वामी सुन्दरदासजी महाराज कृत - श्रीसुन्दर ग्रंथावली
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान, 
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महंत महमंडलेश्वर संत १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञानसमुद्र ग्रन्थ ~ तृतीय उल्लास =*
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*प्रथम नींव दृढ कीजीये, तब ऊपरि बिस्तार ।*
*महलाइत जुडिगै नहीं, त्यौं यम नियम विचार ॥७॥*
(इसी बात को उपमा देकर समझाते हैं-) जैसे किसी भवन के निर्माण में उस की नींव(आधारभूत) जितनी मजबूत बनायी जायगी, भवन उतना ही सुदृढ और दीर्घकाल तक स्थिर रहेगा । नींव के दृढ होने पर, भवन को कितना भी मंजिल ऊँचा बनाइये, वह टिका रहेगा । यदि नींव दृढ़ नहीं होगी तो तिमंजले चौमंजिले की बात तो दूर, इक-मंजला भवन भी दो-तीन वर्ष के वर्षा-आँधी के धक्कों को सह पायेगा या नहीं ? इसमें भी सन्देह रह जाता है । इसी तरह जिस योगसाधक को यम, नियम का अभ्यास जितना सुदृढ होगा; योग साधन में उसकी गति उतनी ही तीव्र व स्थायी होगी ॥७॥
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*अथ यमा: (१) ~ छप्पय*
*प्रथम अहिंसा सत्य, हि जानि स्तेय सु त्यागै ।*
*ब्रह्मचर्य दृढ ग्रहे, क्षमा सौं अनुरागै ॥*
*दया वडौ गुन होइ, आर्ज्जव हृदय सु आंनै ।*
*मिताहार पुनि करै, शौच नीकी बिधि जानै ॥*
*ये दश१ प्रकार के यम कहे, हठप्रदीपिका ग्रन्थ महिं ।*
*सो पहिलै ही इनकौ ग्रहै, चलत योग के पन्थ महिं ॥८॥*
{१- दश यम और दश नियम हठयोगप्रदीपिका में(प्रक्षिप्त श्‍लोकों में) दिये हैं, यथा :-
“अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रह्मचर्यं क्षमा धृति: । 
दयार्ज्जवं मिताहार: शौचं चैव यमा दश ॥१॥
तप: सन्तोष आस्तिक्यं दानमीश्‍वरपूजनम् । 
सिद्धान्तवाक्यश्रवणं ह्रीमती च तपोहुतम् ॥२॥
नियमा दश सम्प्रोक्ता योगशास्त्रविशारदै:” । 
परन्तु फिर आगे उसी ग्रन्थ में उनके लक्षण नहीं दिये । ये लक्षण अन्य स्थलों से श्रीसुन्दरदासजी ने लिखे हैं । कुछ तो पातंजल योग में वर्णित हैं, शेष मन्वादि स्मृतियों में कहे हैं (पातंजलयोग के साधन पाद के २९ वे सूत्र से ४४ सूत्र तक । तथा मनु० २। ७७ । इत्यादि । नियम, याज्ञवल्क्य ३। ३१४, अत्रि ४९ । यम-याज्ञवल्क्य ३। ३१३।}
(दस प्रकार के यमों में) पहला यम *अहिंसा*, द्वितीय *सत्य*, तृतीय *चोरी का त्याग*, चतुर्थ *ब्रह्मचर्य(वीर्यरक्षा)*, पंचम *क्षमा*, षष्ठ *धैर्य*, सप्तम *दया* जो कि महान् गुण है, अष्टम *दूसरों के प्रति हृदय की सरलता*, नवम *मिताहार(न ज्यादा न कम और समय पर भोजन)*, और दसवाँ यम है- *बाह्याभ्यन्तरशुद्धि* । इन दस प्रकार के यमों का वर्णन *हठयोगप्रदीपिका ग्रन्थ* में भी सर्वप्रथम आया है । योग के साधक को इन्हीं का सर्वप्रथम अभ्यास करना चाहिये । (अत: हम भी तुम्हारे लिए सर्वप्रथम इन्हीं का वर्णन विस्तार से कर रहे हैं ।) ॥८॥
(क्रमशः)

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