रविवार, 28 फ़रवरी 2016

= ९७ =

#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐
दादू जोति चमकै तिरवरे, दीपक देखै लोइ ।
चन्द सूर का चान्दणा, पगार छलावा होइ ॥ 
दादू दीपक देह का, माया प्रगट होइ ।
चौरासी लख पंखिया, तहाँ परै सब कोइ ॥ 
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साभार ~ Anand Dhawankar ~ 
इस भौतिक संसार की असलियत क्या है? इसका अंतिम सत्य क्या है? 
सबसे पहले पांचवी शताब्दी में ग्रीक के तत्ववेत्ताओं ने अणु और परमाणु की खोज की, बाद में १५६४ में गलीलियो , १८०३ में डाल्टन, १९०५ में आइन्स्टाइन, १९१० में रुदरर्फोर्ड, इत्यादी लोगों ने परमाणु का भी विभाजन एलेकट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान इत्यादी के रूप में कर दिया और ये भी सिद्ध कर दिया की एलेकट्रान, न्यूट्रान और प्रोटान भी केवल “तरंग” मात्र है, अपनी एक्सिस पर तरंगित(Vibrate) होते रहते है. अतः यह सिद्ध हो गया की इस भौतिक जगत का अंतिम सत्य तरंग मात्र है, और ये कोस्मिक डान्स सतत परिवर्तनशील है. यह इतनी तीव्र गति से होता है कि ठोस जैसा प्रतीत होता है, वस्तुतः वो तरंग मात्र है. बर्कले की केलिफोर्निया की यूनिवर्सिटी का साइंटिस्ट डाक्टर लुईस वाल्टर आल्वरस(Luis Walter Alvarez) इसके दिमाग में ये आया की इस भौतिक जगत का अंतिम सत्य तरंग मात्र है, लेकिन ये तरंग एक सेकण्ड में कितनि बार वाइब्रेट होती है? इसने एक “बबल चेंबर” बनाया और पाया की एक के आगे २२ बिंदी लगाओ इतनी बार ये तरंग वाइब्रेट होती है. इस व्यक्ति को १९६८ में फिजिक्स में नोबल प्राइज मिला. हिरोशिमा नागासाकी पे जो बम गिराए गए थे उसका डिझाइन इस व्यक्ति ने बना था. खैर .. 
भगवान बुद्ध ने अपनी बोधि में देखा: “सब्बो पज्जलितो लोको, सब्बो को पकम्म्पितो” सारा लोक परकम्म्पन – प्रज्वलन मात्र है और चुटकी बजाऊ इतनी देर में शत-सहत्र-कोटि बार(एक लाख बार करोड़) उत्पाद होकर व्यय हो जाता है और ऐसा अनेक बार होता है. “उप्पाद-वय धम्मिनो” उत्पाद होना व्यय होना यही इनका ध्रुव-धर्म है. 
एक ही सच्चाई तक दोनों पहुंचे पर एक विकारों से नितांत विमुक्त हो गया और लुईस वाल्टर आल्वरस की व्याकुलता का क्या ठिकाना: इस आदमी की ये इच्छा थी की हिरोशिमा नागासाकी पे जब बम गिराया जाय तो उस विभिषीका को अपनी आँखों से देखूं. खैर ..
नटराज नृत्य: शिवनृत्य प्रतीकात्मक ही है. यह कोस्मिक तरंगों-किरणों का उदय-व्यय ही नहीं बताता है बल्कि जन्म-मरण के चक्कर का भी यह प्रतीक है. यही ब्रम्हनाद है. 
ये सारे प्रकम्पन एक दुसरे के आकर्षण में बंधे हुए है – टकराते है – बनते है – टूटते है – अनेक रूप धारण करते रहते है. ये कोस्मिक डान्स इस भौतिक जगत का अंतिम सत्य है जो इन आँखों से द्रश्यमान नहीं है इसी कारण जो आँखों से दिखता है हम उसी को सत्य मान बैठते है. जबकि सारा जगत प्रकम्पनो का बुना हुआ जाल है और यही माया है. 
– ह्रदय की तलस्पर्शी गहराइयों से क्षमस्व.

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