गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

= ८७ =

卐 सत्यराम सा 卐
यहु घट बोहित धार में, दरिया वार न पार ।
भैभीत भयानक देखकर, दादू करी पुकार ॥ 
कलियुग घोर अंधार है, तिसका वार न पार ।
दादू तुम बिन क्यों तिरै, समर्थ सिरजनहार ॥ 
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साभार ~ Rajesh Jain ~ मुन्नी, शीला, जलेबी एवं चमेली
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अस्सी वर्षों में सामाजिक दृष्टि में खराबी का पॉवर(लेंस) (+1,-1), से बढ़कर(+10,-10) यदि हुआ है तो कारणों को जानने /समझने में गंभीरता आवश्यक होती है। अस्सी वर्ष के इस समय में हमारे समाज में सिनेमा ग्रेजुअली ज्यादा लोकप्रिय हुआ है। इसमें प्रस्तुत सामग्री में उत्तरोत्तर अश्लीलता बढ़ती गई है। 
पहले सिनेमा हाल में और अब घर घर में दर्शक इसके दर्शन प्राप्त कर रहे हैं। अश्लीलता दर्शन से, बच्चे समय से पहले सेक्स अनुभूति करने लगे हैं। अन्य दर्शकों पर भी मानसिक, शारीरिक और दृष्टि में कामान्धता के दुष्प्रभाव पड़े हैं। 
जब मुन्नी, शीला, जलेबी एवं चमेली तो स्क्रीन पर टेलीकास्ट /ब्रॉडकास्ट के समाप्ति के साथ ओझल होती हैं। तब मुन्नी, शीला, जलेबी एवं चमेली अभिनीत करने वाली और प्रस्तुत करने वाले, अपने काम के शुल्क से अपने आलीशान हो चुके भवनों में विलासिता और सुविधा के जीवन का आनंद और चैन का जीवन जी रहे होते हैं। उनके बँगलो पर दर्शक पहुँच नहीं सकते, लेकिन अश्लील दर्शन से पड़े दुष्प्रभाव दर्शक मन और आँखों में ऐसी वासना घोल देते हैं, जिससे उन्हें आसपास की हर युवती(नारी) में मुन्नी, शीला, जलेबी एवं चमेली दिखने लगती है। ऐसे में हम सभी की बहन -बेटियाँ, माँ एवं पत्नी आदि अपने दैनिक जीवन में ख़राब दृष्टि /नीयत से जूझने को विवश होती हैं। 
सिनेमा के एक्साम्पल से समझने की आवश्यकता है, अब तो अश्लीलता और भी माध्यमों पर सरलता से उपलब्ध मिलती है। प्रतिष्ठा, धन और कई तरह के सम्मान से विभूषित हो तथाकथित सेलिब्रिटीज समाज में खराबियों फैलाती सामग्री बेच स्वयं सुरक्षित एवं प्रतिष्ठित होते हैं। लेकिन इनसे, टिकिटों/ केबल शुल्क / नेट शुल्क आदि रूप में अपना धन और समय व्यर्थ कर दर्शक स्वयं का वर्तमान / भविष्य बिगाड़ने के साथ ही सामाजिक सोहाद्र और शिष्टाचार बिगाड़ कर स्वयं को ही असुरक्षित करने की दुष्प्रेरणा ग्रहण करते हैं। 
मानना, न मानना तो स्वतंत्र भारत में व्यक्तिगत अधिकार है, किन्तु जानना आवश्यक है। रेप, छेड़छाड़, प्रेम संबंधों में छल, गृह कलह और बढ़ते डिवोर्स की जड़ कहाँ पर स्थित है। नारी अपनी सुरक्षा और सम्मान की चुनौतियों को झेलने को क्यों ? विवश है। कहाँ ? देश का विकास अवरुध्द होता है और युवा प्रतिभा कैसे ? रोगी हो समाज उन्नति के परिणाम देने में विफल हो जाती है। 
हम छोटे छोटे दोष, देख परस्पर आरोप -प्रत्यारोप में उलझ, समाधान खोज लेने का भ्रम रखते हैं। 
--राजेश जैन 
03-05-2015
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Rajesh Jain ~ यह नारी अपमान है ....
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पुरुष और नारी में यौन उत्कंठा बढ़ाने वाले शारीरिक अंग होते हैं । जब पुरुष -नारी अपनी दिनचर्या में साथ या आमने-सामने होते हैं। दृष्टि का एक दूसरे पर पड़ना स्वाभाविक होता है। भाई -बहन , पिता -बेटी एवं माँ -बेटे होते हैं, जिनमें भी ऐसे शारीरिक अंग होते हुये एवं सबसे ज्यादा समय का परस्पर साथ होने पर भी कभी, इन रिश्तों के नारी -पुरुष में दृष्टि ऐसे अंगों पर अटकती नहीं है। दृष्टिकोण मलिन नहीं होता है। 
सामाजिक व्यवस्था में पति -पत्नी एक परिवार में रहते हैं, उनके बीच प्रणय -संबंध को, समाज अनुमोदना मिलती है। उल्लेखित दृष्टि अपवाद रूप में इस रिश्ते में अच्छी लग सकती है, वह भी परिस्थिति, समय और स्थान अनुरूप। इसके अतिरिक्त अंग विशेष पर किसी की दृष्टि यौन भावना से ठहर जाना, स्वस्थ समाज, अपेक्षा से दृष्टि अनुमोदित नहीं की जा सकती है। 
ऐसा दृष्टि ठहराव, नारी सम्मान को आहत करता है और नारी के अपमानित होने का मुख्य कारण बनता है। विडंबना कहें उस बात को समस्या रूप में नहीं पहचाना जा रहा है। कोई पुरुष यदि वह नारी का पति नहीं है, उसकी दृष्टि, नारी के अंग विशेष पर ठहर जाये या पलट -पलट कर आये तो लेखक इस दृष्टि को, पुरुष द्वारा उस नारी का किया गया अपमान निरूपित करता है। इतना ही नहीं आजकल की उन सारी सेलिब्रिटीज चाहे वह नारी ही क्यों न हो, जो अपनी प्रस्तुतियों(आइटम सांग्स, वल्गर वीडियो, पोस्टर), स्टेटमेंट्स और हावभाव से, पुरुष दृष्टि को नारी यौनांग की ओर आकर्षित करती हैं, इस लेख के माध्यम से नारी सम्मान का सबसे बड़ा दुश्मन भी निरूपित करता है। 
इन का अपराध और भी भीषण इसलिए हो जाता है क्योंकि वे ऐसी मासूम बेटियों -बहनों को सम्मोहित करते हैं, जो जीवन अनुभव के अभाव में उनकी प्रशंसक बनती हैं, उन जैसा बनने की कामना पालती हैं, और उनकी नकल करने के प्रयत्न करती हैं। ये तथाकथित सेलेब्रिटीस दर्शक/श्रोता पुरुषों को भी उकसाते हैं. उनमें लोकप्रियता अर्जित कर, अपने आर्थिक मंतव्य सिध्द करते हैं। जिस काम के लिए धिक्कारा जाना चाहिये ऐसे छिछोरे हास्य, फूहड़ता और अश्लीलता के लिए ये, जहाँ-तहाँ सम्मान और प्रतिष्ठा पाते हैं। 
समाज में नारी सम्मान की सुनिश्चितता के प्रति हम(पुरुष और नारी) यदि गंभीर हैं तो, सर्वप्रथम इन सम्मोहनों से हमें मुक्त होना होगा। इस तरह, नारी अपमान को प्रौन्नत करने वाले सभी सेलिब्रिटीज के महत्व को ख़त्म /एक सीमा तक कम करना होगा। 
--राजेश जैन 
02-05-2015

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