रविवार, 28 फ़रवरी 2016

= ९८ =

卐 सत्यराम सा 卐
पाणी पावक, पावक पाणी, जाणै नहीं अजाण ।
आदि रु अंत विचार कर, दादू जाण सुजाण ॥ 
सुख मांहि दुख बहुत हैं, दुख मांही सुख होइ ।
दादू देख विचार कर, आदि अंत फल दोइ ॥ 
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साभार ~ Sri Sumeet ~

“सूपनखा रावन कै बहिनी, दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी”
कभी-कभी कुछ ‘शूर्पनखा’ सरीखे लोगों से भेंट हो जाती है. जहाँ अच्छाई वास करती है वहाँ कभी न कभी शूर्पनखा आती है / आता है. कभी-कभी कोई अच्छा काम कर रहे होते हैं और उनके पास कोई स्वार्थवश आता है, जिसका स्वार्थ जब नहीं पूरा होता है तो वो उस व्यक्ति को परेशान करने लगता है. ऐसी घटना जब हमारे किसी परिचित के साथ घटती है तो वो मुझसे कहते हैं सुमीत भैया देखिये.. मैं कहता हूँ आइये ‘अरण्यकाण्ड’ में मैं आपको ‘शूर्पनखा’ दिखाता हूँ.
जहाँ ‘अच्छाई’ होती है- प्रभुता, ऐश्वर्य, सेवा कार्य आदि.. वहाँ शूर्पनखा पहुँचती है.. और ये सब देखकर खुश नहीं होती बल्कि व्याकुल सी हो जाती है- ‘देखि बिकल भई जुगल कुमारा’.. उसके अन्दर एक जलन सी होने लगती है.. पर पहले वो उसको छुपा लेती है.. सुन्दर रूप और वचन के साथ पास आती है.. बहुत मधुर मधुर बातें करती है.. फिर जब स्वार्थ नहीं सिद्ध होता है तो भयानक(असली) रूप बना लेती है.. सुमीत अपने जीवन में ऐसे लोगों से मिला है भाई..
तब जिसके पास पहुंची है वो उसे उसी के कुकर्मों से परिचित करा देते हैं, उसे आइना दिखा देते हैं(नाक-कान काटना).. फिर शूर्पनखा शान्त नहीं बैठती, कुप्रचार में लगती है(कहते भी हैं कि देखना अब हम क्या-क्या बातें फैलाते हैं) .. आस-पास की राक्षस सेना को बुलाती है.. वहाँ भी असफल रहने पर रावन के पास जाती है..
शूर्पनखा सरीखे लोग यही करते हैं.. वो और बड़े दुष्ट के पास जाते हैं, उसे भडकाते हैं(कहते हैं कि आपके बारे में ऐसा-ऐसा कहा; शूर्पनखा ने रावण से कहा था कि मेरी ऐसी दशा तब हुई जब उन्हें पता चला कि मैं आपकी बहन हूँ) .. ऐसे लोगों की भड़काने की रीति भी बड़ी अद्भुत होती है.. पहले बड़ी नीति की बातें करते हैं जैसे इनसे बड़ा ‘सत्संगी’ तो कोई है ही नहीं- मानस के अरण्यकाण्ड में दोहा संख्या २० के बाद की चौपाइयों को देखिये.. नीति के बाद ‘बड़े दुष्ट’ को लालच भी दिखाया जाता है.. (अभी हाल ही में ‘पुत्रजीवक’ के प्रसंग को देखकर तो सुमीत को शूर्पनखा आदि के खूब दर्शन हुए)...
ऐसे व्यक्ति जब आपके जीवन में आयें तो आप मानस को याद करके मुस्कुरा देना.. प्रभु राम और लक्ष्मण का आश्रय लेना.. ये दुष्ट आपका कुछ बिगाड नहीं पाएंगे.. सुमीत कहेगा कि यदि उनके अन्दर ‘शूर्पनखा’ आयी है तो आपके अन्दर भी उससे भिड़ने को ‘राम-लक्ष्मण’ आयेंगे.. बाकी दुष्टों का नाश तो स्वयं उनका पाप ही कर देता है- ‘निज अघ गयउ कुमारग गामी’..
रामायण कितनी सत्य है.. मानस कितनी प्रासंगिक है.. इसका उत्तर तो स्वयं आपके और हमारे जीवन में ही प्राप्त हो जाता है.. क्यों ???..
~ डॉ. सुमीत

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