सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

= १०१ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू पूरणहारा पूरसी, जो चित रहसी ठाम ।
अन्तर तैं हरि उमग सी, सकल निरंतर राम ॥
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साभार ~ Sri Sumeet ~
आप में से कुछ लोगों ने ऐसा ज़रूर देखा होगा कि कोई नल जिससे निरन्तर जल की बूँदें गिरती हों, गिर कर नीचे पड़े पत्थर पर पड़ती हों.. दिन, महीने, साल बीत जाने पर पत्थर में गड्ढा बन जाता है...
सुमीत देखता है कि शक्ति बूंद में नहीं, उसके गिरने में तीव्रता भी नहीं है, सारी की सारी शक्ति ‘निरंतरता’ में है .
सोचो वही बूंद हथेली पर गिरे, उसी रफ़्तार से, तो हथेली पर जरा भी चोट नहीं लगेगी, पर ‘निरंतरता’ मतलब लगातार गिरने ने पत्थर पर गड्ढा कर दिया.
अगर अपने आप को बूंद मान लें, 
बूंद के गिरने को अपना ‘प्रयास’ मान लें
और पत्थर पर गड्ढे पड़ने को ‘सफलता’ मान लें..
हमारी शक्ति-सामर्थ्य बहुत हो, प्रयास भी उत्कृष्ट हो तो सफलता मिलेगी ही..
पर अगर जादा शक्ति-सामर्थ्य नहीं हो(बुद्धि तेज नहीं हो) और प्रयास भी हम उतना नहीं कर पा रहे हों, सुमीत फिर कहे कि बिलकुल उस बूंद और उसके गिरने की तरह... तब ध्यान दो- ‘निरंतरता’ सफलता दिला देगी.. लगे रहो.. लगे रहो.. समय ज़रूर लगेगा.. पर निरन्तर प्रयास करने से सफलता ज़रूर मिलेगी..
~ डॉ. सुमीत

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