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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-२)"*
*लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ८० =*
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*= क्रांजली पधारना =*
फिर क्रांजली के भक्त रामदास और राणीबाई को ज्ञात हुआ कि दादूजी इधर से आगे भुरभुरा जा रहे हैं । तब उन्होंने मार्ग में ही आकर प्रार्थना की स्वामीजी क्रांजली होकर ही पधारे । तब उनका प्रेम देखकर दादूजी शिष्यों सहित क्रांजली पधारे ।
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वहां के भक्तों को दर्शन तथा सत्संग से कृतार्थ करके फिर सीधे भुरभुरा जाने का ही विचार किया । कारण, भुरभुरा के राघवदासजी जब भी दादूजी के दर्शन को आते थे तभी बारंबार प्रार्थना करते थे कि - स्वामीजी महाराज ! भुरभुरे अवश्य पधारें । इससे उनकी प्रार्थना और प्रेम का स्मरण दादूजी को ही आया था ।
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अतः क्रांजली से चलकर भुरभुरे पधारे । आमेर से भुरभुरा जाने में पांच दिन लगे थे -
"पांच दिवस मारग में लागे, गये भुरभुरे सन्त सभागे ।
राघवदास जु सेवा कीनी, स्वामी तहां रहे ऋतु तीनी॥२३॥
(विश्राम ११, जनगोपाल) ।
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भुरभुरे जब पहुँचे तब राघवदासजी को ज्ञात हुआ कि स्वामी दादूजी पधारे हैं । राघवदासजी सुनते ही शीघ्रता से भक्त मंडली को साथ लेकर कीर्तन करते हुये दादूजी के सामने गये और अति सत्कार से ग्राम में लाकर एकान्त स्थान में ठहराया तहा संत सेवा का अच्छा प्रबन्ध कर दिया ।
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*= भुरभुरे में सत्संग =*
भुरभुरा में दादूजी महाराज उक्त जनगोपालजी के पद्यानुसार तीन ऋतु(६ मास) रहे । दो-दो मास का एक ऋतु होता है, यह प्रसिद्ध है । इससे सूचित होता है कि वहां के राघवदासजी और अन्यान्य भक्तों ने सेवा तथा सत्संग में अच्छा भाग लिया होगा, तब ही ६ मास तक वहां विराजे होंगे ।
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प्रातः प्रवचन और दिन के तीन से चार तक प्रवचन होता था और सायंकाल आरती, संकीर्तन, रामनाम ध्वनि आदि बहुत अच्छा सत्संग का कार्यक्रम चलता था । आसपास के ग्रामों के भक्त लोग भी सत्संग के समय आते थे और प्रवचन सुनकर अपने को कृतार्थ समझते थे ।
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राघवदासजी दादूजी की इस साखी के अनुसार प्रायः सेवा में ही रत्त रहते थे,
"सेवक सिरजनहार का, साहिब का बंदा ।
दादू सेवा बंदगी, दूजा क्या धंधा ॥"
अर्थात वे अपना मुख्य काम सेवा करना ही समझते थे । ऐसी ही उनकी दृढ़ भावना थी ।
(क्रमशः)
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