मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

= विन्दु (२)८८ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)**
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८८ =**

पास में बैठे रामदास ने पूछा - भगवन् ! गुण और उनके कार्य अन्तःकरण इन्द्रियों के विकार तथा कर्मों की फांसी कैसे कटे, यही कृपा करके संक्षिप्त रूप से कहैं । तब दादूजी ने कहा - 
**= रामदास के प्रश्न उत्तर =** 
"सहजैं ही सब होयगा, गुण इन्द्रय का नाश । 
दादू राम संभालतां, कटै कर्म के पाश ॥" 
राम - नाम के निरंतर स्मरण से निर्गुण ब्रह्म की प्राप्ति में बाधक त्रिगुण और उनके कार्य अन्तःकरण इन्द्रियों के सब विकारों का नाश अनायास ही हो जायगा तथा ज्ञान द्वारा कर्म - पाश कट कर मुक्त हो जायगा । फिर रामदास के सहोदर भाई दूदा ने पूछा - भगवन् ! राम - भजन का क्या फल होता है, वह कृपा करके बताइये ? तब दादूजी महाराज ने यह साखी बोली - 
**= दूदा के प्रश्न का उत्तर =**
"राम भजन का सोच क्या, करतां होय सो होय । 
दादू राम संभालिये, फिर न बूझिये कोय ॥" 
राम भजन के फल का क्या विचार करना है ? भजन करने से जो होता है वही होगा अर्थात् निष्काम भाव से करने से तो राम ही प्राप्त होगा । सकाम भाव से करने से कामना मिलेगी । निष्काम राम - भजन द्वारा सब संसार में राम को ही देख, सब को राम रूप देखने का अभ्यास हो जाने पर फिर कोई भी प्रश्न इस विषय का पूछने की आवश्यकता नहीं रह जाती है । फिर दूदाजी दादूजी के शिष्य हो गये और दादूजी के उपदेशानुसार ही साधन करने लगे । ये सौ शिष्यों में हैं । एक दिन वीरम नामक एक व्यक्ति ने पूछा - स्वामिन् ! प्रभु प्राप्ति का सुगम और श्रेष्ठ साधन कौन सा है ? आप कृपा करके बताइये । तब दादूजी महाराज ने यह साखी कही -
**= वीरम के प्रश्न का उत्तर =**
"दादू नीका नाम है, सो तू हिरदे राखि । 
पाखंड प्रपंच दूर कर, सुन साधू जन की साखि ॥" 
यज्ञ, योगादि साधनों के साधक को पतन का भय रहता है, नाम साधना के साधक को नहीं । इसलिये नाम - स्मरण प्रभु प्राप्ति का सुगम और श्रेष्ठ साधन है, संतों की साधन विषयक साखियें सुनकर उनके विचार द्वारा पाखंड प्रपंच को दूर करके तू वह नाम-स्मरण ही निरंतर हृदय में रख । फिर वीरम दादूजी के शिष्य होकर वीरमदास बन गये और उक्त प्रकार ही भजन करने लगे । ये दादूजी के सौ शिष्यों में हैं । 
(क्रमशः)

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