बुधवार, 7 दिसंबर 2016

= पंचेन्द्रियचरित्र(मी.च. १७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*मीनचरित्र(३)=(२) वानर कथा*
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*ऐसी बिधि फंद पसारा ।*
*कछु बाहरि चर्वन डारा ।*
*पुनि आप छिप्या कहुं जाई ।*
*मर्कट आवा तहां धाई ॥१७॥*
इस तरह बाजीगर ने बन्दर को फँसने का फन्दा डाल दिया, और उसको इससे भी ज्यादा भुलावा देने के लिये दो-चार मिठाई के टुकड़े हाँडी के आस-पास डाल दिये । ऐसा कर, बन्दर के फँसने की प्रतीक्षा में बाजीगर पास ही एक तरफ कहीं छिप गया । कुछ देर बाद कहीं से एक बन्दर वहाँ आ ही पहुँचा ॥१७॥ 
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*कपि चर्वन मुख मैं नावा ।*
*अति स्वाद लगा सब पावा ।*
*पुनि गागरि मैं कर मेला ।*
*कछु भया दई का खेला ॥१८॥*
बन्दर ने उस हाँडी के पास पड़े मिठाई के टुकड़े देखे, उठाकर मुँह में डाले । अच्छे स्वादिष्ट लगे, सब खा गया । फिर खोजते-खोजते हाँडी पर उसका ध्यान गया । हाँडी के अन्दर देखा तो नीचे मिठाई दिखाई दी । बस, फिर क्या था आव देखा न ताव, हाँडी में हाथ डाल ही तो दिया । अब आगे का हाल सुनिये कि उसकी क्या गत बनी ! ॥१८॥ 
(क्रमशः)

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