सोमवार, 2 जनवरी 2017

= विन्दु (२)८९ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८९ =**

**= काणोता में सत्संग =** 
काणोता में सत्संग के समय मन, वचन और कर्म से दादूजी के परायण रहने वाले वहां मुख्य भक्त थे हरिदास, मोहन, ऊधो, देवदास, लाल और शुद्धराम । काणोता मेंचैनरामजी के यहां बहुत भारी उत्सव हुआ । वहां महोत्सव का सर्व कार्य अच्छी प्रकार सुधार करके ही किया गया था । सत्संग के समय आस-पास के ग्रामों के भक्तजन भी आकर संत दर्शन और सत्संग का पूरा - पूरा लाभ उठाते थे । एक दिन सत्संग के पश्चात् काणोता में हरिदास ने पूछा - स्वामिन् ! आपका मन तो स्थिर रहता है कभी भी चंचल नहीं होता है । इस स्थिरता में मुख्य कारण क्या है ? कृपा करके बतायें । तब दादूजी ने यह पद बोला -
**= हरिदास के प्रश्न का उत्तर =** 
"लाग रह्यो मन राम से, अब अनतैं नहिं जाये रे । 
अचला से थिर रह्यो, सके न चित्त डुलाये रे ॥टेक॥ 
ज्यों फनींद्र१ चंदन रहै, परिमल२ रहै लुभाय रे ।
त्यों मन मेरा राम से, अब की बेर अघाये रे ॥ १ ॥ 
भँवर न छाड़े बास को, कमल हि रह्यो बँधाये रे । 
त्यों मन मेरा राम से, बेध रह्यो चित लाये रे ॥ २ ॥ 
जल बिन मीन न जीव ही, बिछुरत ही मर जाये रे । 
त्यों मन मेरा राम से ऐसी प्रीति बनाये रे ॥ ३ ॥ 
ज्यों चातक जल को रटे, पिवपिव करत बिहाये रे । 
त्यों मन मेरा राम से, जन दादू हेत लगाये रे ॥ ४ ॥" 
हमारा मन निरंजन राम के स्वरूप चिन्तन में लगा है, अब अन्य में नहीं जाता है । अचल ब्रह्म में स्थिर हो रहा है, इसी से चित्त चंचल नहीं होता है । जैसे सर्प१ सुगंध२ के लोभ से चन्दन पर रहता है, वैसे ही मेरा मन परमानन्द के लोभ से राम के स्वरूप चिन्तन में लगा रहता है । इसी से इस वर्तमान जन्म के समय में हम तृप्त हुये हैं । जैसे भ्रमर कमल - गंध के लिये कमल को नहीं छोड़ता, सांयकाल सूर्य छिपने पर उसी में बंद हो जाता है, वैसे ही मेरा मन राम के स्वरूप चिन्तन से विद्ध होकर उसी में लगा रहता है । जैसे जल बिना मछली जीवित नहीं रह सकती, बिछुड़ते ही मर जाती है, वैसे ही मेरे मन ने राम से मीन की - सी प्रीति कर ली है, उनको छोड़कर नहीं रह सकता । जैसे चातक पक्षी स्वाति जल को रटता रहता है, उस समय पीव - पीव करते हुये ही जीता है, हे जन ! वैसे ही मेरा मन राम से स्नेह लगाये रहता है । इससे ही मेरा मन चंचल नहीं होता है । 
(क्रमशः)

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