रविवार, 1 जनवरी 2017

= १८८ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू जब प्राण पिछाणै आपको, आत्म सब भाई ।
सिरजनहारा सबनि का, तासौं ल्यौ लाई ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya

कद्दूओ का ध्यान ********
एक पुरानी कहानी तुमसे कहूं—झेन कथा है...
एक झेन सदगुरु के बगीचे में कद्दू लगे थे, सुबह—सुबह गुरु बाहर आया तो देखा, कद्दूओ में बड़ा झगड़ा और विवाद मचा है। कद्दू ही ठहरे! उसने कहा : ‘अरे कद्दूओ यह क्या कर रहे हो? आपस में लड़ते हो !’ वहा दो दल हो गए थे कद्दूओं में और मारधाड़ की नौबत थी। झेन गुरु ने कहा ‘कद्दूओ, एक—दूसरे को प्रेम करो।’ उन्होंने कहा ‘यह हो ही नहीं सकता। दुश्मन को प्रेम करें? यह हो कैसे सकता है !’ तो झेन गुरु ने कहा, ‘फिर ऐसा करो, ध्यान करो।’ कदुओं ने कहा. ‘हम कद्दू हैं, हम ध्यान कैसे करें ?’ तो झेन गुरु ने ‘कहा : ‘देखो—भीतर मंदिर में बौद्ध भिक्षुओं की कतार ध्यान करने बैठी थी—देखो ये कद्दू इतने कद्दू ध्यान कर रहे हैं।’ बौद्ध भिक्षुओं के सिर तो घुटे होते हैं, कदुओं जैसे ही लगते हैं। ‘तुम भी इसी भांति बैठ जाओ।’ पहले तो कद्दू हंसे, लेकिन सोचा ‘गुरु ने कभी कहा भी नहीं; मान ही लें, थोड़ी देर बैठ जाएं।’ जैसा गुरु ने कहा वैसे ही बैठ गए—सिद्धासन में पैर मोड़ कर आंखें बंद करके, रीढ़ सीधी करके। ऐसे बैठने से थोड़ी देर में शांत होने लगे।

सिर्फ बैठने से आदमी शांत हो जाता है। इसलिए झेन गुरु तो ध्यान का नाम ही रख दिये हैं. झाझेन। झाझेन का अर्थ होता है. खाली बैठे रहना, कुछ करना न। कद्दू बैठे—बैठे शांत होने लगे, बड़े हैरान हुए, बड़े चकित भी हुए! ऐसी शांति कभी जानी न थी।

चारों तरफ एक अपूर्व आनंद का भाव लहरें लेने लगा। फिर गुरु आया और उसने कहा : ‘अब एक काम और करो, अपने— अपने सिर पर हाथ रखो।’ हाथ सिर पर रखा तो और चकित हो गए। एक विचित्र अनुभव आया कि वहा तो किसी बेल से जुड़े हैं। और जब सिर उठा कर देखा तो वह बेल एक ही है, वहां दो बेलें न थीं, एक ही बेल में लगे सब कद्दू थे। कदुओं ने कहा : ‘हम भी कैसे मूर्ख! हम तो एक ही के हिस्से हैं, हम तो सब एक ही हैं, एक ही रस बहता है हमसे—और हम लड़ते थे।’ तो गुरु ने कहा. ‘अब प्रेम करो। अब तुमने जाना कि एक ही हो, कोई पराया नहीं। एक का ही विस्तार है।’
osho

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