बुधवार, 23 अगस्त 2017

= ८ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू पीव का नाम ले, तो मिटै सिर साल ।*
*घड़ी मुहूरत चालनां, कैसे आवै काल ॥*
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साभार ~ भक्ति कथायें

*((((((( काल का भय ))))))*
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संत कबीर जी एक बार बाजार से जा रहे थे, मार्ग में उनको एक व्यापारी की पत्नी चक्की पिसती दिखाई दी ।चक्की को देख के कबीर जी को रोना आ गया । अनेक लोगों ने उनसे रोने का कारण पूछा, परंतु कबीर जी कुछ नहीं बोले । इतने में वहां निपट निरंजन नाम का एक साधु आया । उन्होंने कबीर जी को रोने का कारण पूछा । 
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उस साधु के अधिकार को जान कर कबीर जी ने कहा, ‘‘इस चक्की को घूमते देख कर मेरे मन में चिंता उत्पन्न हुई, इस चक्की में डाले हुए गेहूं के दानों के पिस जाने से जैसे आटा बनता है, उसी प्रकार इस भव सागर में फंसकर मेरा भी यही हाल होगा ।’’ इस विचार से मन दु:खी हो गया। 
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तब उस साधु ने कहा, ‘‘कबीर जी थोडा विचार करें । चक्की में डाले हुए गेहूं के दानों के पिसने से आटा बनता है, यह बात सत्य है, परंतु खूंटे के पास जो दाने रहते हैं, वे नहीं पिसते । वैसे ही परमेश्वर के नाम से(साधना से) जो दूर रहते हैं, वह काल के तूफान में फंस जाते हैं; परंतु नाम जप करने वालों को, ईश्वर के निकट रहने वालों को काल का भय नहीं होता ।’’
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(((((( जय जय श्री राधे ))))))
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