शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

= साँच का अंग =(१३/१०९-११)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*साँच का अंग १३* 
*सद् असद् गुरु परीक्षा लक्षण*
आई रोजी ज्यों गई, साहिब का दीदार ।
गहला लोगों कारणै, देखे नहीं गंवार ॥१०९॥
सद्गुरु और असद् गुरु की परीक्षा के लक्षण कह रहे हैं - जिसकी साधना रूप कमाई ज्यों ज्यों हो पाती है, त्यों - त्यों ही ईश्वर साक्षात्कारार्थ खर्च होती है, प्रतिष्ठादि के लिए नहीं, वही सद्गुरु है । और जो अज्ञानी अपनी साधना रूप कमाई से ईश्वर साक्षात्कार तो नहीं करता, किन्तु लोगों को चमत्कारादि दिखाने में ही खो देता है, वह असद् गुरु है ।
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*पतिव्रत निष्काम*
दादू सोई सेवक राम का, जिसे न दूजी चिंत ।
दूजा को भावे नहीं, एक पियारा मिंत ॥११०॥
निष्काम पतिव्रत का परिचय दे रहे हैं - जिसे एक अपना सच्चा मित्र राम ही प्यारा लगता है, अन्य कोई भी प्रिय नहीं होता । जिसके मन में राम को छोड़कर अन्य का चिन्तन होता ही नहीं, वही राम का सच्चा सेवक है ।
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*जाति पाँति भ्रम विध्वँसन*
अपनी अपनी जाति सौं, सबको बैसैं पाँति ।
दादू सेवक राम का, ताके नहीं भराँति ॥१११॥
११० - ११७ में जाति पांति का भ्रम दूर कर रहे हैं - सँसारी जन अपनी - अपनी जाति से प्रेम करते हैं और एक जाति वाले सब एक पँक्ति में बैठते हैं किन्तु जो निरंजन राम का सच्चा सेवक होता है, उसके हृदय में उक्त भ्राँति नहीं रहती, वह सबसे प्रेम करता है । 
(क्रमशः)

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