शनिवार, 16 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/३-दो.,२-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*= दोहा =*
*तन मन इन्द्री बशकरन, ऐसा सद्गुरु सूर ।*
*शंक न आनै जगत की, हरि सौं सदा हजूर ॥३॥*
उस सद्गुरु का(उनके बताये मार्ग के अभ्यास में) वीर शिष्य अपने तन, मन और इन्द्रियों को कठोरता से निगृहीत कर लेता है । वह लोक-लाज की परवाह न कर, समाज के सभी बन्धनों से दूर रहकर नित्य निरन्तर भगवान् के सम्मुख रहने में ही अपनी भलाई मानता है ॥३॥
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*= त्रिभंगी =*
*तौ सदा हजूरं अरि दल चूरं,*
*भागे दूरं भकभूरं ।*
*तब बाजै तूरं आतम मूरं,*
*झिलि मिलि नूरं भरपूरं ॥*
*पुनि यहै अकूरं नाँहीं ऊरं,*
*प्रेम हिलूरं बरखाशी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अबिनाशी ॥२॥*
वह शिष्य गुरु के बताये राममन्त्र के निरन्तर अभ्यास से काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि दुर्गुणरूप शत्रुओं को चूर्ण-विचूर्ण(खण्ड-खण्ड) कर डालता है या फिर वे उसके सामने से डर के मारे बेतहाशा भाग खड़े होते हैं । 
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तब मन्त्र का अभ्यास करते-करते उस शिष्य के कानों में अनहद नाद सुनायी देने लगता है और आत्मज्ञान के प्रकाश से एक ज्योति जगमगा उठती है । 
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फिर यह ज्ञानांकुर धीरे-धीरे, छोटा होते हुए भी प्रेमा-भक्ति की वर्षा के सहारे, लहलहा उठता है । 
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यह सद्गुरु श्रीदादूदयाल जी महाराज की कृपा का ही प्रसाद है, जिन्होंने मुझको राममन्त्र सुनाकर शाश्वत ब्रह्म का ज्ञान करा दिया ॥२॥ 
(क्रमशः)

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