शनिवार, 16 सितंबर 2017

= साँच का अंग =(१३/११२-४)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*साँच का अंग १३* 
चोर अन्याई मसखरा, सब मिल बैसैं पाँति ।
दादू सेवक राम का, तिनसौं करैं भराँति ॥११२॥
सँसारी जन चोर, अन्यायी, मसखरे आदि को तो साथ लेकर अपनी पँक्ति में बैठाते हैं और जो राम - भक्त होता है, उससे भ्राँति करते हैं उसे दूर बैठाते हैं, उसका अनादर करते हैं ।
दादू सूप१ बजायां क्यों टले, घर में बड़ी बलाइ ।
काल झाल इस जीव का, बातन हीं क्यों जाइ ॥११३॥
जैसे घर में घुसी हुई बड़ी विपत्ति छाज१ बजाने से नहीं निकलती, वैसे ही कालाग्नि की काम - क्रोधादिक - ज्वालायें केवल जाति - पक्षपातादि की बातों से ही कैसे नष्ट हो सकती हैं ? वे तो जीव को जलाती ही रहती हैं ।
साँप गया सहनाण१ को, सब मिल मारैँ लोक ।
दादू ऐसा देखिये, कुल का डगरा फ़ोक२॥११४॥
जैसे अँधेरी रात्रि के समय रेतीली भूमि से सर्प तो चला गया हो फिर सब लोग मिल कर उसकी लकीर१ पर दँडे मारने लगें, तो व्यर्थ है, वैसे ही मन तो सब जातियों में घुस जाता है, केवल शरीर को ही स्पशब्ददि से स्नानादि - दँड देते हैं - इस प्रकार जाति - कुलादि के पक्षपात का मार्ग व्यर्थ२ ही देखा जाता है । 
(क्रमशः)

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