शनिवार, 16 सितंबर 2017

आज्ञाकारी आज्ञा भंगी का अंग ७(१-४)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐
*सतगुरु शब्द उलंघि करि, जनि कोई सिष जाइ ।*
*दादू पग पग काल है, जहाँ जाइ तहँ खाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**आज्ञाकारी आज्ञा भंगी का अंग ७**
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गुरु मुख कसौटी अंग के अनन्तर गुरुजनों की आज्ञा मानने वालों और न मानने वालों का परिचय देने के लिये तथा आज्ञा मानने न मानने से होने वाले लाभ-हानि का प्रदर्शन करने के लिये आज्ञाकारी आज्ञा भंग का अंग कह रहे हैं - 
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आज्ञा गुरु गेविन्द की, चलै सु चेला चार ।
रज्जब रम१ तों२ मन मुखी, पग पग पूरी मार ॥१॥
१-३ में आज्ञाकारी, आज्ञा भंगी का परिचय दे रहे हैं - गुरु की आज्ञा में शिष्य व गोविन्द की आज्ञा में दास चलते हैं तब तो आनन्द रहता है और मन की इच्छानुसार चलने१ से२ पद-पद पर चिन्ता, काम, क्रोधादि की खूब मार खानी पड़ती है ।
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आज्ञा में आतम रहै, आज्ञा भाने भंग ।
रज्जब सगुरा सीख में, निगुरा अपने रंग१ ॥२॥
गुरुजनों की आज्ञा पालन करने से जीवात्मा जन्मादि संसार में भ्रमण करने से रुक जाता है । आज्ञा न मानने से बारंबार मरता है । जिसको गुरु प्राप्त हुआ है, वही श्रेष्ठ शिक्षा द्वारा आज्ञा में रहता है । जिसे गुरु नहीं मिला वह अपनी वासना१ के अनुसार चलता है ।
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पिता पूत नर नारि के, गुरु शिष आज्ञा रंग ।
रज्जब राजा चाकर हु, हुक्म हते मन भंग ॥३॥
पिता की आज्ञा में पुत्र, पति की आज्ञा में पत्नी, गुरु की आज्ञा में शिष्य, राजा की आज्ञा में सेवक रहते हैं, तब आनन्द रहता है । आज्ञा न मानने से पितादि के मन का प्रेम पुत्रादि से टूट जाता है ।
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सद्गुरु सरवर क्या करै, जे शिष सफरी१ मन खोट ।
रज्जब बंसी२ वाम३ लग, खेंच लई यम चोट ॥४॥
४-५ में आज्ञा न मानने वाले का परिचय दे रहे हैं - जब मच्छी१ स्वयं ही अपने मन के लालच रूप दोष से काँटे२ को जा पकड़े तब सरोवर क्या करे ? फिर तो पकड़ने वाला खेंचकर सरोवर के बाहर ले आता है और वह मर जाती है । वैसे ही शिष भी गुरु-आज्ञा न मान कर स्वयं ही पर नारी३ में आसक्त होता है तब सद्गुरु क्या करे ? फिर तो यातना भोगेगा ही ।
(क्रमशः)

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