शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/१-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*=त्रिभंगी =*
*तौ चरण तुम्हारा प्राण हमारा,*
*तारण हारा भाव पोतं ।*
*जो गहै बिचारा लगै न बारा,*
*बिन श्रम पारा सो होतं ॥*
*सब मिटै अन्धारा होइ उजारा,*
*निर्मल सारा सुख राशी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अविनाशी ॥१॥*
भगवन् आपके चरणकमल मुझे अपने प्राणों से भी प्रिय हैं; क्योंकि ये संसारसागर से तारनेवाली नौका के समान हैं ।
जो इनकी शरण में आ जाता है, उसे भावसागर से पार होने में कुछ भी देर नहीं लगती ।
उस(शरणागत) के अन्तर्हृदय का सभी अज्ञानान्धकार मिट जाता है और उसमें ज्ञान का प्रकाश जगमगा उठता है, उसका चित्त निर्मल हो जाता है और वह नित्य सुख का अनुभव करने लगता है ।
गुरुदेव श्रीदादूदयाल जी महाराज कृपा करके मेरे सम्मुख पधारे, मुझे राममन्त्ररूपी शब्द(उपदेश) सुनाया, उस मन्त्र के माध्यम से ब्रह्म(परम-तत्व) का ज्ञान कराया ॥१॥
(क्रमशः)

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