#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*गुरु अंकुश मानैं नहीं, उदमद माता अंध ।*
*दादू मन चेतै नहीं, काल न देखे फंध ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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**आज्ञाकारी आज्ञा भंगी का अंग ७**
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गुरु धरती गोविन्द जल, शिष तरुवर मधि पोष
रज्जब सरके ठौरतैं, देखि दुहुं दिशि दोष ॥१३ ॥
१३-१५ में आज्ञाकारी और आज्ञा भंगी की होने वाली उन्नति तथा हानि दिखा रहे हैं - गुरु पृथ्वी के समान हैं और गोविन्द जल के समान हैं । वृक्ष पृथ्वी में लगा रहता है तब तो जल से उसका पोषण होता है और पृथ्वी से उखड जाने पर जल से गल जाता है । वैसे ही शिष्य गुरु की आज्ञा में रहता है तब तो निष्काम गोविन्द भजनादि से परमार्थ की आज्ञा में रहता है तब तो निष्काम गोविन्द भजनादि से परमार्थ उसका पोषण होता रहता है और गुरु आज्ञा में नहीं रहता तब सकाम साधना द्वारा संसार में ही पड़ता है ।
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शिष्य गुडी१ सुरति डोरी में, गुरु खिलार हित हाथ ।
तंतू टूटे तैं गई, साबित२ सांई साथ ॥१४॥
पतंग१ डोरी में बँधकर उड़ाने वाले खिलारी के हाथ में है तब तक तो उसके साथ है और डोरी टूट जाय तो उसके हाथ से चला जाता है । वैसे ही शिष्य आज्ञा मानना रूप वृत्ति-डोरी में बँधकर गुरु के स्नेह-हाथ में है तब तक तो ठीक२ रूप से परमात्मा के साथ है और आज्ञा मानना रूप वृत्ति टूट जाय तो वह भी प्रभु से दूर हो जाता है ।
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ज्यों धोडा असवार वश, चलै पराये भाय१ ।
रज्जब अड़२ अपनी गहै, तभी मार बहु खाय ॥१५॥
अश्व अश्वारोही के वश में है तथा अपने से भिन्न अश्वारोही के भावानुसार१ चलता है तब तक तो ठीक है और जब वह अपनी टेक२ पकडता है तब खूब मार खाता है । वैसे ही शिष्य गुरु आज्ञा में चलता है तब तक तो ठीक है और अपने हट से यमन की इच्छानुसार चलता है तब भारी यम यातना भोगता है ।
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अणी१ अग्नि अहि सौं असह२, गुरु आज्ञा में गौन ।
जन रज्जब तन त्रास तुच्छ, मन ही मरावे कौन ॥१६॥
१६ में कहते हैं - गुरु आज्ञा पालन कठिन होने पर भी, उसका फल देखते हुये कष्ट अति कम है - भाला आदि का अग्र२ भाग चुभन से, अग्नि के ताप से और सर्प से होने वाले दु:ख से भी गुरु आज्ञा पालन करने का दु:ख असह्य२ है तो भी इसका जो मन को जीतना रूप महाफल है, उसके आगे इससे होने वाला शारीरिक कष्ट अति तुच्छ है । कारण - गुरु को छोडकर और कौन मन को मारने में सहायता करता है ?
(क्रमशः)
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