#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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*अज्ञ स्वभाव अपलट *
अँधे को दीपक दिया,
तो भी तिमिर न जाइ ।
सोधी नहीं शरीर की,
तासनि का समझाइ ॥१२१॥
१२० में कहते हैं - अज्ञानी का स्वभाव नहीं बदलता - जैसे
अँधे के हाथ में दीपक दे दिया जाय तो भी उसका अँधेरा दूर नहीं होता । वैसे ही
जिसको शरीर का भी ज्ञान नहीं होता कि - "यह विनाशी है", उसे आत्म - ज्ञान कैसे समझाया जाय
अर्थात् उसे उपदेश देने पर भी ज्ञान नहीं होता ।
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*सगुण निगुण कृतघ्नी *
दादू कहिये कुछ उपकार को,
मानैं अवगुण दोष१ ।
अँधे कूप बताइया,
सत्य न मानैं लोक ॥१२२॥
उपकारक का उपकार न मानने वाले कृतघ्नी का परिचय दे रहे
हैं - ज्ञान - नेत्र हीन अँधों को सँतों ने यह बता दिया है - "सँसार - वासना
कूप है, इसमें गिरोगे तो
बारँबार जन्म - मरण रूप डुबकियां लगाते हुये क्लेश ही पाओगे ।" किन्तु लोग
सत्य नहीं मानते । कृतघ्नी लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है उनको कुछ उपकार की बात
कहैं तो उसको भी वे दोष दृष्टि द्वारा अवगुण रूप ही मानते हैं । (प्राचीन हिन्दी
लिपि में "ष"१ को "ख" लिखा व बोला जाता था ।)
कालर खेत न नीपजे,
जे बाहे सौ बार ।
दादू हाना बीज का,
क्या पच मरे गंवार ॥१२३॥
यदि ऊसर भूमि में सौ बार बीज डाला जाय तो भी कुछ नहीं
उत्पन्न होगा, प्रत्युत बीज
की ही हानि होगी । वैसे ही अज्ञानी प्राणी मायिक पदार्थों से परम सुख प्राप्ति के
लिए कितना ही प्रयत्न करे तो भी क्या परमसुख प्राप्त होगा ? अर्थात्
नहीं ।
(क्रमशः)
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