मंगलवार, 19 सितंबर 2017

= साँच का अंग =(१३/१२१-३)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साँच का अंग १३*
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*अज्ञ स्वभाव अपलट*
अँधे को दीपक दिया, तो भी तिमिर न जाइ ।
सोधी नहीं शरीर की, तासनि का समझाइ ॥१२१॥
१२० में कहते हैं - अज्ञानी का स्वभाव नहीं बदलता - जैसे अँधे के हाथ में दीपक दे दिया जाय तो भी उसका अँधेरा दूर नहीं होता । वैसे ही जिसको शरीर का भी ज्ञान नहीं होता कि - "यह विनाशी है", उसे आत्म - ज्ञान कैसे समझाया जाय अर्थात् उसे उपदेश देने पर भी ज्ञान नहीं होता ।
*सगुण निगुण कृतघ्नी*
दादू कहिये कुछ उपकार को, मानैं अवगुण दोष१ ।
अँधे कूप बताइया, सत्य न मानैं लोक ॥१२२॥
उपकारक का उपकार न मानने वाले कृतघ्नी का परिचय दे रहे हैं - ज्ञान - नेत्र हीन अँधों को सँतों ने यह बता दिया है - "सँसार - वासना कूप है, इसमें गिरोगे तो बारँबार जन्म - मरण रूप डुबकियां लगाते हुये क्लेश ही पाओगे ।" किन्तु लोग सत्य नहीं मानते । कृतघ्नी लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है उनको कुछ उपकार की बात कहैं तो उसको भी वे दोष दृष्टि द्वारा अवगुण रूप ही मानते हैं । (प्राचीन हिन्दी लिपि में "ष"१ को "ख" लिखा व बोला जाता था ।)
कालर खेत न नीपजे, जे बाहे सौ बार ।
दादू हाना बीज का, क्या पच मरे गंवार ॥१२३॥
यदि ऊसर भूमि में सौ बार बीज डाला जाय तो भी कुछ नहीं उत्पन्न होगा, प्रत्युत बीज की ही हानि होगी । वैसे ही अज्ञानी प्राणी मायिक पदार्थों से परम सुख प्राप्ति के लिए कितना ही प्रयत्न करे तो भी क्या परमसुख प्राप्त होगा ? अर्थात् नहीं ।
(क्रमशः)

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