सोमवार, 18 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/५-दो.,४-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*= दोहा =*
*सम दृष्टि शीतल सदा, अद्भुत जाकी चाल ।*
*ऐसा सद्गुरु कीजिये, पल मैं करे निहाल ॥५॥*
जो सुखी-दुःखी को, धनी-निर्धन को, पापी या धर्मी को समान भाव से देखता है, जिसका न किसी के प्रति राग है न द्वेष, जो हमेशा शान्त भाव से रहता है, न क्रोध करता है न राजस प्रेम, जिसकी गति निराली(अनिर्वचनीय) है, ऐसे व्यक्ति को ही सद्गुरु बनाना चाहिये । जो कुछ समय में हमें तत्वज्ञान देकर संतुष्ट व् कृतकृत्य कर सकता है ॥५॥
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*= त्रिभंगी =*
*तौ करै निहालं अद्भुत चालं,*
*भया निरालं तजि जालं ।*
*सो पिवै पियालं अधिक रसालं,*
*ऐसा हालं यह ख्यालं ॥*
*पुनि वृद्ध न बालं करम न कालं,*
*भागे सालं चतुराशी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अविनाशी ॥४॥*
जो हमें अल्प समय में ही तत्वज्ञान समझाकर कृतकृत्य कर सकता है, जिसकी गति निराली है, जो एकाकी विचरण करता है, संसार के सभी जंजालों से मुक्त हो चुका है, वह स्वयं ज्ञानामृत पान करता रहता है, दूसरों को कराने की सामर्थ्य रखता है जिसे पीकर कोई भी साधक अहिर्निश तत्वचिन्तन में समाधिस्थ(ध्यानमग्न) हुआ रहता है,
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उसके लिये न कोई बालक है न कोई वृद्ध, न कोई कर्तव्य है, न जीवन-मरण । उसका संसार की चौरासी लाख योनियों में आवागमन का कण्टक सदा के लिये दूर हो जाता है । इन सभी गुणों से युक्त श्रीदादूदयालजी महाराज कृपाकर मुझे गुरुरूप में दिखायी दिये, उन्होंने मुझको रामनाम का उपदेश देकर मेरा अविनाशी ब्रह्म से तादात्म्य स्थापित करा दिया ॥४॥
(क्रमशः)

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