सोमवार, 6 जनवरी 2020

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*परमेश्‍वर के भाव का, एक कणूँका खाइ ।*
*दादू जेता पाप था, भ्रम कर्म सब जाइ ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी​ 
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*श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु* *मन निरूपण*
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एक ब्राह्मण चित्तशुद्धि के लिये तीर्थयात्रा करने गया । किन्तु बहुत तीर्थ करने पर भी मन शुद्ध न हुआ । अन्त में अमरनाथ से कश्मीर देश में आया । एक गांव में एक किसान के घर जाकर भोजन की याचना की । किसान ने कहा "मेरा अन्न शुद्ध नहीं है, कारण अन्न पकते समय मैंने चोरी से दूसरे की पारी का जल दिया था । मेरे भाई का अन्न शुद्ध है, इसलिये आप उससे लें ।" ब्राह्मण ने उसके भाई का अन्न खाया, खाते ही उसका मन शुद्ध हो गया और भूत भविष्यत का ज्ञान भी हुआ । वैसे कहते भी है कि "जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन"
शुद्ध अन्न से होत है, चित्त शुद्ध सत जान ।
हुआ विप्र का इक समय, खाने से सुमहान ॥१॥
#### श्री दृष्टान्त सुधा सिन्धु ####
### श्री नारायणदासजी पुष्कर, अजमेर ###
### सत्यराम सा ###

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