रविवार, 21 जून 2020

*सभी ईश्वर के अधीन है*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷 
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷 
https://www.facebook.com/DADUVANI 
*दादू जब लग नैन न देखिये, साध कहैं ते अंग ।* 
*तब लग क्यों कर मानिये, साहिब का प्रसंग ॥* 
*(श्री दादूवाणी ~ साधु का अंग)* 
================ 
*साभार ~ श्रीरामकृष्ण-वचनामृत{श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)}* 
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ 
.
वैद्यनाथ आए हैं । वैद्यनाथ विद्वान् हैं । कलकत्ता के हाइकोर्ट के वकील हैं । वे श्रीरामकृष्ण को हाथ जोड़कर प्रणाम करके एक ओर बैठ गए ।
सुरेन्द्र- ये आपसे कुछ पूछना चाहते हैं, इसीलिए आए हैं ।
श्रीरामकृष्ण(वैद्यनाथ से)- जो कुछ देख रहे हो, सभी उनकी शक्ति है । उनकी शक्ति के बिना कोई कुछ भी नहीं कर सकता । परन्तु एक बात है । उनकी शक्ति सब जगह बराबर नहीं है । विद्यासागर ने कहा था, ‘परमात्मा ने क्या किसी को अधिक शक्ति दी है? मैंने कहा, ‘शक्ति अगर अधिक न देते तो तुम्हें हम लोग देखने क्यों आते? तुम्हारे दो सींग थोड़े ही हैं ! अन्त में यही ठहरा कि विभुरूप से सर्वभूतों में ईश्वर हैं, केवल शक्ति का भेद है ।
.
वैद्यनाथ- महाराज ! मुझे एक सन्देह है । यह जो Free Will अर्थात् स्वाधीन इच्छा की बात होती है, - कहते हैं कि हम इच्छा करें तो अच्छा काम भी कर सकते हैं और बुरा भी, - क्या यह सच है? क्या हम सचमुच स्वाधीन हैं?
श्रीरामकृष्ण- सभी ईश्वर के अधीन है । उन्हीं की लीला है । उन्होंने अनेक वस्तुओं की सृष्टि की है, - छोटी-बड़ी, भली-बुरी, मजबूत-कमजोर । अच्छे आदमी, बुरे आदमी । यह सब उन्हीं की माया है – उन्हीं का खेल है । देखो न, बगीचे के सब पेड़ बराबर नहीं होते ।
“जब तक ईश्वर नहीं मिलते, तब तक जान पड़ता है, हम स्वाधीन हैं । यह भ्रम वे ही रख देते हैं, नहीं तो पाप की वृद्धि होती, पाप से कोई न डरता, न पाप की सजा मिलती ।
.
“जिन्होंने ईश्वर को पा लिया है, उनका भाव जानते हो क्या है? मैं यन्त्र हूँ, तुम यन्त्री हो; मैं गृह हूँ, तुम गृही; मैं रथ हूँ, तुम रथी; जैसा चलाते हो, वैसा ही चलता हूँ जैसा कहाते हो, वैसा ही कहता हूँ ।
(वैद्यनाथ से)- “तर्क करना अच्छा नहीं । आप क्या कहते हैं?” 
वैद्यनाथ- जी हाँ, तर्क करने का स्वभाव ज्ञान होने पर नष्ट हो जाता है ।
.
श्रीरामकृष्ण- Thank you(धन्यवाद) ! (लोग हँसते हैं ।) तुम पाओगे । ईश्वर की बात कोई कहता है, तो लोगों को विश्वास नहीं होता । यदि कोई महापुरुष कहें, मैंने ईश्वर को देखा है, तो कोई उस महापुरुष की बात ग्रहण नहीं करता । लोग सोचते हैं, इसने अगर ईश्वर को देखा है तो हमें भी दिखाए तो जानें । परन्तु नाड़ी देखना कोई एक दिन में थोड़े ही सीख लेता है ! वैद्य के पीछे महीनों घूमना पड़ता है । तभी वह कह सकता है, कौन कफ की नाड़ी है, कौन पित्त की है और कौन वात की है । नाड़ी देखना जिनका पेशा है, उनका संग करना चाहिए । (सब हँसते हैं ।) 
.
“क्या सभी पहचान सकते हैं कि यह अमुक नम्बर का सूत है ? सूत का व्यवसाय करो, जो लोग व्यवसाय करते हैं, उनकी दुकान में कुछ दिन रहो, तो कौन चालीस नम्बर का सूत है, कौन इकतालीस नम्बर का, तुरन्त कह सकोगे ।”
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें