शुक्रवार, 28 मई 2021

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*पीछे को पग ना भरे, आगे को पग देइ ।*
*दादू यहु मत शूर का, अगम ठौर को लेइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- सुख दुख निरूपण
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लैला के प्रेमी मजनूं पर दया करके लैला के पिता ने अपने गांव में दुकानदारों से कह दिया कि मजनूं जो भी वस्तु मांगे उसे दे दो, उसके दाम हमसे लेना । इससे बहुत मजनूं बन गये और बड़ा खर्चा बढ गया । लैला के पिता ने लैला से कहा कि - मजनूं एक है या अनेक ? लैला - एक । पिता - उसकी परीक्षा क्या ? लैला - वह मुझे चाहता है अन्य कुछ नहीं । 
एक ऊँचा ही स्तम्भ बनाकर उसके चारों ओर पोल रख उसमें अग्नि जला लोहे की चादर ऊपर बिछा मजनूं को बुलाने की डौडी पिटवा दी कि - मजूनूं को लैला बुला रही है । लैला को स्तम्भ पर बैठा दिया । बहुत से मजनूं आये किंतु तप्त लोहे को देखकर लैला के पास न जा सके । असली जब आया तो वह तप्त लोहे पर पैर धरता हुआ लैला के पास जा पहुंचा । कारण उसका मन लैला में था उससे उसे तप्त लोहे का भान भी नहीं हुआ । जब मन रहता अन्य दिशि, सुख दुख भान न हो । तप्त लोह पद मजनूं के, जान सके नहिं कोय ॥६२॥

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