शुक्रवार, 21 मई 2021

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*समता के घर सहज में, दादू दुविध्या नांहि ।*
*सांई समर्थ सब किया, समझि देख मन मांहि ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु - ईश्वर
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एक गांव में एक संत रहते थे, उसी गांव के बाहर एक दूसरे संत भी रहा करते थे । एक बार गांव वाले संत के पास नारदजी जा निकले । संत ने कहा- आप तो नारद जी के समान प्रतीत होते है । नारदजी - हां, मैं नारद ही हूँ ।
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संत- आप प्राय: विष्णु जी के पास जाते रहते है कृपावश मेरे एक प्रश्न का उत्तर उनसे पूछ आना । नारद - हाँ कहिये, आपका क्या प्रश्न है ? संत - गांव के बाहर एक साधु रहता है, वह भगवान को भी कुछ न कुछ सुनाता रहता है तो भी उसके पास जनता की भीड़ लगी रहती है और मैं अच्छा उपदेश करता हूँ भगवत आरती, पाठ पूजा भजन आदि करता हूँ तो मेरे पास लोग बहुत कम आते है इसका क्या कारण है ? यह पूछ कर आना ।
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नारदजी विष्णु जी के पास गये और पूछा । विष्णु जी बोले - तुम उससे कहना कि - उसका उत्तर तो पीछे कहुंगा, पहले मार्ग में मैंने देखा सो कहना कि - एक टीले पर एक सूई खड़ी है उसके छेद में से निशान आदि से सजे हुये बड़े बड़े हजारों हाथी निकल रहे थे ।
फिर वह क्या कहता है सो सुनकर गांव के बाहर वाले से भी कहना । वह भी कहै सो भी सुनकर दोनों की बातों सुनना ।
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नारदजी ने वैसा ही किया । गांव वाला सुनते ही क्रोधित होकर बोला - अरे गप्पी ! भाग यहाँ से, नही तो डण्डों से मारूंगा । तू तो नारद नहीं है कोई ठग ज्ञात होता है ।
फिर नारदजी ने वही बात गांव से बाहरवाले से कही, वह सुनते ही हंसता हुये कहा - नारद जी इसमें क्या बड़ी बात है ? वह निर्गुण परमात्मा तो सुई के छेद से हाथी क्या बड़े बड़े पर्वत निकाल सकता है ।
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नारद ने दोनों की बात विष्णु जी को जा सुनाई । विष्णु जी बोले - बाहर वाले की यही विशेषता है कि वह सर्वसमर्थता को जानता है गांववाला नहीं जानता । इससे यह ज्ञात होता है कि ईश्वर की सर्वसमर्थता को श्रेष्ठ संत जानते हैं ।
सर्व समर्थ परेश है, जानत संत सुजान ।
सुई छिद्र करिहि क्या, निकले मेरु समान ॥६९॥

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