🌷🙏 🇮🇳 #daduji 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 सत्यराम सा 卐 🙏🌷
🌷🙏 #श्री०रज्जबवाणी 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू काम कठिन घट चोर है, घर फोड़ै दिन रात ।*
*सोवत साह न जागई, तत्त्व वस्तु ले जात ॥*
===============
श्री रज्जबवाणी
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*काम का अंग १५५*
इस अंग में काम संबंधी विचार कर रहे हैं ~
.
काम हिं देखत ही भये, ज्ञान ध्यान मति भंग ।
जन रज्जब जोगै१ गयो२, जागै अपत३ अनंग४ ॥१॥
कामुक दृष्टि से कामिनी को देखते ही - ज्ञान ध्यान और सुमति आदि नष्ट हो जाते हैं । योग१ भी समाप्त२ हो जाता है और प्रसुप्त काम४ रूप पुत्र३ जग जाता है ।
.
मदन वदन देखे नहीं, सुर नर शंका सु नांहिं ।
जन रज्जब रिपु रिंद१ है, मोटा वैरी मांहि ॥२॥
काम, देवता और नरादि के मुख को देखकर शंका-संकोच नहीं करता, यह स्वच्छन्द१ शत्रु है तथा हृदय के भीतर रहने वाला महान् वैरी है ।
.
सिध१ साधक हारै सबै, सुर नर किये निमाम२ ।
जन रज्जब जोधार३ गुण, कह्या न माने काम ॥३॥
काम के आगे सभी सिद्ध१- साधक हार गये हैं । देवता तथा नरों को काम ने अहंकार२ रहित कर दिया है अर्थात जीत लिया है । इस काम में योद्धा३ का गुण शौर्य है यह किसी का भी कहा नहीं मानता, इच्छानुसार ही करता है ।
.
काम काल गरजै सदा, काया नगरी मांहिं ।
जन रज्जब हार्या जगत, सुर नर छूटे नांहिं ॥४॥
काया नगरी में काम रूप काल सदा गर्जता रहता है । इससे देवता नर आदि कोई भी नहीं बचे, सभी जगत हार गया है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें