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*काया कबज कमान कर, सार शब्द कर तीर ।*
*दादू यहु सर सांध कर, मारै मोटे मीर ॥*
*(श्री दादूवाणी ~ शूरातन का अंग)*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *२ कीर्तन भक्ति*
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*॥ भावुक के कीर्तन के सामान अन्य का कीर्तन नहीं ॥*
भावुक कीर्तन तुल्य नहिं, पर संकीर्त्तन होय ।
सूरदास के पदों सम, होय सके नहिं कोय ॥४७॥
दृष्टांतकथा - सुनते हैं अकबर बादशाह के वजीर रहिमन खानखाना ने सूरदासजी के पदों को एक मोहर देकर के संग्रह किये थे । मोहरों के लोभ से बहुतों ने नये पद बना २ कर सूरदासजी का भोग लगा दिया था । और खानखाना के पास लेगये थे । तब खानखाना ने एक सूरदासजी पद का बाट बना लिया । फिर जो नये पद आते थे उनको सूरदासजी के पद के बाट से तोला जाता था ।
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यदि नया पद बड़ा भी होता तथा उसका कागज मोटा भी होता तो भी वह सूरदासजी के पद से हल्का ही होता था और सूरदासजी का पद यदि उससे छोटा भी होता तथा कागज भी महीन होता तो भी उसके बराबर उतर जाता था ।
इस परीक्षा से सूर सागर ग्रन्थ तैयार किया गया था । इससे सूचित होता है कि भावुक के कीर्तन के समान साधारण का कीर्तन नहीं होता ।
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