मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

*ज्ञानमार्ग तथा शुद्धा भक्ति*

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*दादू इस संसार में, ये द्वै रत्न अमोल ।*
*इक सांई अरु संतजन, इनका मोल न तोल ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(३)ज्ञानमार्ग तथा शुद्धा भक्ति*
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अब तक गृहस्वामी ने श्रीरामकृष्ण के जलपान के लिए कोई व्यवस्था नहीं की । श्रीरामकृष्ण स्वयं उनसे कह रहे हैं – “कुछ खाना चाहिए । यदु की माँ से उस दिन इसीलिए मैंने कहा, 'कुछ खाने को दो ।' नहीं तो गृहस्थ का कहीं अमंगल न हो ।"
गृहस्वामी ने कुछ मिष्टान्न मँगाया । श्रीरामकृष्ण मिष्टान्न खा रहे हैं । नन्द बसु तथा अन्य लोग श्रीरामकृष्ण की ओर एकदृष्टि से ताक रहे हैं । देख रहे हैं, वे क्या करते हैं ।
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श्रीरामकृष्ण हाथ धोयेंगे । जिस तश्तरी में मिठाई दी गयी थी वह दरी पर बिछी हुई चद्दर पर रखी थी, इसलिए श्रीरामकृष्ण वहीं अपने हाथ नहीं धो सके । हाथ धोने के लिए एक आदमी एक बरतन(पीकदान) ले आया ।
पीकदान रजोगुण का चिह्न है । श्रीरामकृष्ण देखकर कह उठे, "ले जाओ - ले जाओ ।" गृहस्वामी ने कहा, "हाथ धोइये ।"
श्रीरामकृष्ण अन्यमनस्क हैं । कहा, "क्या ? - हाथ धोऊँगा ।"
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श्रीरामकृष्ण बरामदे के दक्षिण ओर उठ गये । मणि को हाथ पर पानी डालने के लिए आज्ञा की । मणि गडुए से पानी छोड़ने लगे । श्रीरामकृष्ण अपनी धोती में हाथ पोंछकर फिर बैठने की जगह पर आ गये । समागत सज्जनों के लिए तश्तरी में पान लाये गये थे । उसी में के पान श्रीरामकृष्ण के पास ले जाये गये । उन्होंने पान नहीं लिया ।
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नन्द वसु (श्रीरामकृष्ण से) - एक बात कहूँ ?
श्रीरामकृष्ण (सहास्य) – क्या ?
नन्द बसु - पान आपने क्यों नहीं खाया ? सब तो ठीक हुआ, इतना यह अन्याय हो गया ।
श्रीरामकृष्ण - इष्ट को देकर खाता हूँ । यह एक अपना भाव है ।
नन्द बसु - वह तो इष्ट ही में जाता ।
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श्रीरामकृष्ण - ज्ञानमार्ग और चीज है, और भक्तिमार्ग दूसरी ।
ज्ञानी के मत से सभी चीजें ब्रह्मज्ञान की दृष्टि से ली जा सकती हैं, भक्तिमार्ग में कुछ भेद-बुद्धि होती है ।
नन्द बसु - तो यह दोष हुआ है ।
श्रीरामकृष्ण - यह एक मेरा भाव है । तुम जो कुछ कहते हो ठीक है, वैसा भी है ।
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श्रीरामकृष्ण गृहस्वामी को चापलूसों के सम्बन्ध में सावधान कर रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - एक बात के बारे में सावधान रहना । चापलूस अपने स्वार्थ की ताक में रहते हैं । (प्रसन्न के पिता से) आप क्या यहाँ रहते हैं ?
प्रसन्न के पिता - जी नहीं, परन्तु इसी मुहल्ले में रहता हूँ ।
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नन्द बसु का मकान बहुत बड़ा है, इस पर श्रीरामकृष्ण कह रहे हैं - "यदु का मकान इतना बड़ा नहीं है । इसीलिए उससे उस दिन मैंने कहा ।"
नन्द - हाँ, उन्होंने(जोड़ासाखों में) एक नया मकान बनवाया है ।
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श्रीरामकृष्ण नन्द वसु का उत्साह बढ़ा रहे हैं, कह रहे हैं –
"तुम संसार में रहकर ईश्वर की ओर मन रखे हुए हो, क्या यह कुछ कम बात है ? जिसने संसार का त्याग कर दिया है वह तो ईश्वर को पुकारेगा ही । उसमे बहादुरी क्या है ? जो संसार में रहकर पुकारता है, धन्य वही है ।
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"किसी एक भाव का आश्रय लेकर उन्हें पुकारना चाहिए । हनुमान में ज्ञान और भक्ति दोनों थे, नारद में शुद्धा भक्ति थी ।
"राम ने पूछा, 'हनुमान, तुम किस भाव से मेरी पूजा करते हो ?" हनुमान ने कहा, 'कभी तो देखता हूँ, तुम पूर्ण हो और मैं अंश हूँ; कभी देखता हूँ, तुम प्रभु हो और मैं दास हूँ; और राम, जब तत्व का ज्ञान होता है, तब देखता हूँ, तुम्हीं 'मैं हो और मैं ही 'तुम' हूँ ।’
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"राम ने नारद से कहा, 'तुम वर लो ।' नारद ने कहा, 'राम, यह वर दो कि तुम्हारे पादपद्मों में शुद्धा भक्ति हो जिससे फिर तुम्हारी भुवन-मोहिनी माया से मुग्ध न होऊँ ।’ "
श्रीरामकृष्ण अब उठनेवाले हैं ।
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श्रीरामकृष्ण (नन्द बसु से) - गीता का मत है, बहुत-से आदमी जिसे मानते और पूजते हैं उसमें ईश्वर की विशेष शक्ति है । तुममें ईश्वर की शक्ति है ।
नन्द बसु - शक्ति सभी मनुष्यों में बराबर है ।
श्रीरामकृष्ण (विरक्ति से) - यही तुम लोगों की एक रट है । सब आदमियों की शक्ति कभी बराबर हो सकती है ? विभुरूप से वे सर्वभूतों में विराजमान हैं, यह ठीक है, परन्तु शक्ति की विशेषता है ।
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"यही बात विद्यासागर ने भी कही थी । उसने कहा था, 'क्या उन्होंने किसी को अधिक शक्ति दी है और किसी को कम ?' तब मैंने कहा, 'अगर शक्ति की भिन्नता न रहती, तो तुम्हें हम लोग देखने क्यों आते ? क्या तुम्हारे सिर पर दो सींग हैं ?"
श्रीरामकृष्ण उठे । साथ-साथ सब भक्त भी उठे । पशुपति साथ साथ दरवाजे तक आये ।
(क्रमशः)

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