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*कंकर बंध्या गांठड़ी, हीरे के विश्वास ।*
*अंतकाल हरि जौहरी, दादू सूत कपास ॥*
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*साभार ~ @Subhash Jain*
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मैंने सुना, एक होटल में, होटल ठीक नहीं चलती थी तो मैनेजर ने एक तरकीब की; उसने एक तख्ती लगा दी होटल पर कि भोजन मजे से करिये, आपको पैसे न चुकाने पड़ेंगे। आपके नाती-पोते चुका सकते हैं। हम आपके नाती-पोतों से ले लेंगे, आप फिक्र न करें।
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बड़ी भीड़ हो गई। मुल्ला नसरुद्दीन भी पहुंच गया–अपनी पत्नी, बच्चों, मोहल्ले के बच्चों को भी ले कर और मित्रों को भी लेकर कि आओ। जो भी श्रेष्ठतम भोजन उपलब्ध हो सकता था, खूब डट-डट कर उसने खिलवाया। अब कोई कमी न थी। अब नाती-पोतों की नाती-पोते जानेंगे, क्या लेना-देना उसका! जब बाहर निकलने लगा, तो मैनेजर ने आ कर छः सौ रुपये का बिल उसके हाथ में दे दिया।
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छः सौ रुपये, और उसने कहा, बिल कैसा ! तख्ती को देखो। उसने कहा, वह तो ठीक है। यह आपके बाप-दादे जो भोजन कर गए थे, उसका बिल है। आज का बिल तो हम नाती-पोतों सो ले लेंगे। ऐसे पीछे से बंधे, आगे से बंधे हम सरकते रहते हैं। तुमने अपने पिछले जन्मों में जो किया है, उससे भी नहीं छूट पाये हो। अभी जो कर रहे हो, वह कल तुम्हें और बांध लेगा।
तबके बांधे तेई नर, अजहुं नहिं छूटे।
पकरि पकरि भलि भांति से, जमदूतन लूटे॥
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और कितनी दफे मौत ने तुम्हें लूटा और भलीभांति पकड़-पकड़ कर लूटा, फिर भी तुम अब तक नहीं समझ पाये ! कितनी बार मरे, कितनी बार जन्मे; कितनी बार फिर पैदा होते ही फिर उसी दौड़ में लग गए ! कितनी बार धन इकट्ठा किया, कितनी बार गंवाया! कितनी बार पत्नी-पति के राग-रंग में पड़े, कितनी बार राग-रंग टूटा ! मौत आई–सब छीनती गई। फिर भी तुम जागते नहीं।
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तबके बांधे तेइ न, अजहुं नहिं छूटे।
पकरि पकरि भलि भांति से, जमदूतन लूटे॥
हार गए यमदूत भी तुमसे। खूब भलीभांति से पकड़-पकड़ कर खूब तुम्हें पीटते, मारते, खींचते ! मगर जैसे ही तुम यमदूतों के हाथ से छूटते हो, तुम फिर उसी काम में लग जाते हो।
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काम को सब त्यागी के, जो रामहिं गावै।
दास मलूका यों कहै, तेहि अलख लखावै॥
कहते हैं मलूक: काम को सब त्यागी के, जो रामहिं गावै, एक काम भर कर लो, जो तुमने कभी नहीं किया। अब तक तुम कामवासना में ही पड़े रहे, तुमने सारी ऊर्जा कामवासना में लगा दी, कामना में लगा दी। वही ऊर्जा का थोड़ा सा हिस्सा राम के गुणगान में लगाओ। काम से थोड़ी सी ऊर्जा मुक्त करो, राम से डुबाओ।
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दो दिशाएं हैं–काम और राम। काम का अर्थ है: अंधे की तरह अहंकार की बातों का मान कर चले जाना। राम का अर्थ है: विराट को सुनना, अनंत की तरफ आंखें उठाना, शाश्वत को गुनगुनाना। जो रामहिं गावै…थोड़ा राम का गीत गुनगुनाओ, थोड़ी राम की मस्ती में लगो।
दास मलूका यों कहै, तेहि अलख लखावै।
और जिसने राम का गीत गाना सीख लिया, जिसने भजा अल्लाह को, जिसने थोड़ी सी गुनगुन की भीतर प्रभु की, उसे वह मिल जाता है जो लक्ष्य है और किसी तरह से साधे नहीं सधता।
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तेहि अलख लखावै। जो दिखाई नहीं पड़ता आंखों से, वह दिखाई पड़ता है फिर। जो कानों से सुनाई नहीं पड़ता, वह मधुर, अपूर्व संगीत सुनाई पड़ता है फिर। तो हाथ से छुआ नहीं जाता, वह प्राणों से छुआ जाता है फिर। तेहि अलख लखावै। असंभव संभव हो जाता है राम के साथ।जो नहीं होता किसी भी तरह, वह संभव हो जाता है। अकेले-अकेले संभव हो संभव नहीं होता, असंभव की तो बात ही छोड़ दो।
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जो लहर अकेले ही जीने को कशिश कर रही है, विक्षिप्त हो जायेगी। और जो लहर सागर के साथ जीने लगी, जिसने सागर के साथ संबंध घोषित कर दिया और कहा, तुम्हारी हूं; तुम्हीं गुनगुनाना मुझसे…रामहिं गावै, अब मैं नहीं गाती, तुम ही गाओ मुझसे; अब तुम्हीं धड़को मेरी धड़कन में; तुम्हीं उठो लहर बन कर; तुम्हीं छुओ चांदतारों को; तुम्हीं नाचो; मैं हटती हूं, मैं तुम्हें द्वार दरवाजा देती हूं…रामहिं गावै…तेहि अलख लखावै–फिर उसे जो अलक्ष्य है, वह भी उसका लक्ष्य बन जाता है। जो नहीं मिल सकता है, वह भी मिलता है। जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि कभी पा सकेंगे, वह कल्पनातीत भी हमारे ऊपर झरत जाता, बरस जाता।
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जरा राम की तरफ आंख उठाओ, तो राम तुम्हारी तरफ आंख उठाये। कुछ पीने-पिलाने की जरूरत नहीं, बस उसकी नजर से थोड़ी नजर मिल जाए, काम करती है नजर, नाम है पैमाने का। उस परम प्रियतम की आंखें से थोड़ी आंख मिल जाए, बस एक दरस–सब हो गया ! परम कीमिया तुम्हारे हाथ आ गई। उस एक झलक में ही, उसकी आंख से तुम्हारी आंख के मिल जाने में ही, तुम समझ लोगे कि जब तक भूल-चूक कहां हो रही थी।
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और ध्यान रखना, परमात्मा तुम्हारी तरफ सदा से देख ही रहा है। उसकी नजर तुम पर गड़ी है। सिर्फ तुम्हीं उसकी तरफ नहीं देख रहे। इसलिए तुम्हारे ही लौटने की बात है। और जब तक तुम उसे न देखोगे, तब तक भूल-चूक होती रहेगी; तुम कंकड़-पत्थरों को हीरे समझोगे।
ओशो

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