परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

मंगलवार, 21 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/९-११) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
*= वेद के कर्मकाण्ड की उपयोगिता =*
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*जो सत कर्मनि आचरै, तिनकौ भाख्यौ स्वर्गे ।*
*नाना बिधि सुख भोगवै, सो जानैं अपवर्ग ॥९॥*
जो वेद के विधिवाक्यों को मान कर सत्कर्मों में प्रवृत्त होता है, उसे उन मन्त्रों में स्वर्गप्राप्ति होना लिखा है । वह स्वर्ग में नाना प्रकार के सुखों का उपभोग करता है । वह चिरकाल तक स्वर्ग सुख का उपभोग ही, उसके लिये एक प्रकार का 'मोक्ष' है । (वह उसी में मस्त रहता है।)॥९॥
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*ज्यौं बालक कै रोग ह्वै, ओषध कटुक न साथ ॥*
*मोदक वस्तु दिखाई कैं, औषध प्यावै मात ॥१०॥*
जैसे रोगी बालक जब कड़वी दवा नहीं पीता तो उसे लड्डू या बतासा आदि मीठी चीज के लोभ से(या चीनी मिलाकर) वह दवाई पिलायी जाती है ॥१०॥ 
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*यौं सत कर्मनि कौ कहे, निषिध छुडावण काज ।*
*मूरख जाने सत्य करि, सुख स्वर्गापुर राज ॥११॥*  
इसी तरह सांसारिक पुरुष को निषिद्ध कर्मों से दूर हटाने के लिये इन कर्मकाण्ड के मन्त्रों द्वारा राज्य-स्वर्गादिसुख की प्राप्ति कराने वाले सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त किया जाता है ॥११॥  
(क्रमशः)

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