परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

मंगलवार, 14 मार्च 2017

= विन्दु (२)९४ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९४ =*
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*= दादू धाम पर भोजन प्रबन्ध =*
इससे दूर - दूर के लोग भी दादूजी के दर्शन और सत्संग के लिये नारायणा नगर में आने लगे थे । यह सब देखकर नारायणा नरेश तथा ग्राम के भक्तों ने श्री दादू धाम पर भोजन का प्रबन्ध कर दिया था, जिससे आगत अतिथियों को भोजन सम्बन्धी कष्ट नहीं हो सके । भोजन व्यवस्था का अधिकार दादूजी महाराज के शिष्य केशवजी को दे दिया गया था । केशवजी दादूजी के सौ शिष्यों में हैं । केशवजी में सेवा भाव विशेष रूप में था । वे स्वयं भी सेवा में लगे ही रहते थे । एक दिन उनके भोजन बनाने के चूल्हे की मिट्टी गिर गई थी । उसी चूल्हे पर दादूजी महाराज के लिये पांच तोले बाजरे का दलिया स्वयं केशवजी ही बनाते थे । तब केशवजी ने सोचा थोड़ी देर के पीछे तो आगत अतिथियों के लिये भोजन की व्यवस्था करनी है । इस मध्यान्ह के समय में ही मिट्टी लाकर चूल्हा ठीक कर दिया जाय । उस चूल्हे को सुधारना वे गुरुजी की निजी सेवा ही समझते थे, इससे उसके लिये मिट्टी भी आप ही लाना चाहते थे । नहीं तो मिट्टी लाने वाले और बहुत भक्त थे, किन्तु गुरुजी की सेवा मैं ही करूंगा । ऐसी ही उनकी भावना थी । 

*= चूल्हे के लिये मिट्टी लाने से रोकना =*
वे मूरड़(चूने के समान सफ़ेद मिट्टी) खोदने की पाहुड़ी तथा तगारी लेकर जाने लगे तब दादूजी महाराज ने उनको जाते देखकर पूछा - कहां जाते हो ? केशवजी ने कहा - चूल्हे की मिट्टी पड़ गई है अतः उसके लगाने के लिये मिट्टी लाने जाता हूँ । तब दादूजी महाराज ने कहा - “अभी मत जाओ, अपने आसन पर जाकर ब्रह्म भजन करो । दादूजी महाराज का उक्त वचन सुनकर केशवजी रुक तो गये किंतु फिर यह सोचकर कि - फिर सांयकाल तो भोजन व्यवस्था का कार्य करना है, मिट्टी ला नहीं सकूंगा और फिर देर हो जाने से मिट्टी सूखेगी भी नहीं और बिना सूखे उस पर भोजन बनाना भी उचित नहीं रहेगा । अतः दादूजी महाराज की दृष्टि न पड़े ऐसे मार्ग से मिट्टी की खानि पर चले गये । वहाँ जाकर ज्यूं ही मिट्टी खोदने के लिये मिट्टी पर पाहुड़ी मारी त्यूंही मिट्टी का बहुत बड़ा खंड खानि के ऊपर का भाग टूटकर उनके ऊपर आ पड़ा और वे उसके नीचे दब गये । 

*= केशव का देहान्त =*
उसी समय दादूजी महाराज को उनकी योगशक्ति से ज्ञात हो गया कि केशव खानि का ऊपर का भाग टूटकर पड़ने से उसके नीचे दब गया है । तब दादूजी ने अपने शिष्य रज्जब आदि को कहा - केशव मेरे निषेध करने पर भी किसी अन्य मार्ग से मूरड़ की खानि में चले गये हैं और अब उनका शरीर खानि का उपर का भाग टूट जाने से उसके नीचे दब गया है और प्राणान्त भी हो गया है । तुम लोग जाकर उनके शरीर को निकाल कर भैराणा पर्वत पर रख आओ जिससे पशु - पक्षियों के खाने के काम में आ जायगा, व्यर्थ ही नष्ट नहीं होगा । फिर शिष्यों ने दादूजी महाराज की आज्ञा के अनुसार ही किया । भैराणा पर्वत पर शव को रख आये । कहा भी है - 
“केशव शिष खाने गयो, गुरु को वचन निवार । 
दब्यो गार तले जाय के, संतन लियो निकार ॥” 
(क्रमशः)

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