परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

रविवार, 26 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/२०-१) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
*= उपासनाकाण्ड/ज्ञानकाण्ड की उपयोगिता =*
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*वेद वृक्ष यौं बरनियौ, याही अर्थ बिचार ।*
*कर्म पत्र ताकैं लगैं, भक्ति पुष्प निराधार ॥२०॥*
साधुजनों ने यों वेदरूपी वृक्ष का वर्णन किया है । इसी अर्थ समग्र वेदमन्त्रसमूह का विभाजन किया गया है । उस वेदवृक्ष के कर्मकाण्ड रूपी पत्र लगते हैं, उन पत्रों में से ही शनै: शनै: भक्ति(उपासना) रूपी पुष्पों की निश्चित रूप से उत्पत्ति होती है ॥२०॥
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*ज्ञान सु फल ऊपर लग्यौ, जाहि कहे वेदान्त ।*
*महा बचन निश्चै धरै, सुन्दर तब ह्वै शान्त ॥२१॥*
॥ समाप्तोऽयं बेदविचारग्रन्थः ॥
और उन पुष्पों से एक दिन(साधना करते-करते) ब्रह्मज्ञानरूपी फल को उत्पत्ति होगी । इस ज्ञानकाण्ड के 'तत्वमसि' 'अहं ब्रह्मास्मि' आदि महावाक्यों पर साधक जब पूर्ण निश्चय जमा लेता है तब उसके चित्त की वृत्तियाँ सांसारिक विषयों से सदा के लिये उपरत हो जाती हैं । और वह शान्तभाव से त्रिगुणातीत अवस्था में जीवन्मुक्त अवधूत होकर संसार में विचरता है ॥२१॥
॥ यह वेदविचार ग्रन्थ समाप्त ॥
(क्रमशः)

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