परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 20 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
*= वेद के कर्मकाण्ड की उपयोगिता =*
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*विषई देख्यौ जगत सब, करत अनीति अधर्म ।*
*इन्द्रिय लंपट लालची, तिनहिं कहे बिधि कर्म ॥७॥*
(अब कवि प्रथमतः वेद के कर्मकाण्ड की उपयोगिता बतलाते हैं-) कर्मकाण्ड की उपासना वे लोग करते हैं जो विषयी हैं, संसार में अनीति तथा अधर्म के कार्य करते रहते हैं, इन्द्रियों के अधीन हैं, विषयरस के लोभी हैं, उन लोगों लक्ष्य करके कर्मकाण्ड के विधिवाक्य कहे गये हैं ॥७॥ 
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*निषिध छुड़ावण कारनैं, भय उपजायौ आइ ।*
*मद्य मांस पर त्रिय गवन, इन तें नरक हिं जाइ ॥८॥*
इसी तरह, उपर्युक्त क्रिया-कर्मवाले पुरुषों को उन कुकर्मों से दूर हटाने के लिये, उनमें कहे प्रति भय उत्पन्न करने के लिये निषेध-वाक्य कहे गये हैं । उनमें कहा गया है- मद्यमांस का सेवन तथा परायी स्त्री के साथ सम्भोग नरक की तरफ ले जाने-वाले कार्य हैं ॥८॥ 
(क्रमशः)

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