परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 11 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/१५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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*स्वप्नै मैं सुख पाइयौ, स्वप्नै पायो दुःख ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, ना कछु दुःख न सुक्ख ॥१५॥*
कोई स्वप्न में सुख पावे, कोई दूसरा दुःख जागने पर ये दोनों सुख-दुःख अपना कुछ भी अस्तित्व नहीं रखते ॥१५॥ 
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*स्वप्नै मैं योगी भयौ, स्वप्नै मैं संन्यास ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, ना घर ना बनबास  ॥१६॥*
कोई गृहस्थ स्वप्नावस्था में अपने को योगी यति संन्यासी के रूप में वन में अकेला देखे, दूसरा अपने को गृहस्थाश्रम में बँधा हुआ देखे, वास्तव में न उसका बनवास सच्चा है न उसका ग्राहस्थ्य ॥१६॥ 
(क्रमशः)

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