परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शुक्रवार, 31 मार्च 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/१०-१) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
*= रजोगुण-सत्वगुणमिश्रित वृत्ति =*
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*रज सत मिश्रित वृत्ति ये, जप तप तीरथ दान ।*
*योग यज्ञ यम नेम ब्रत, बंछै स्वर्गस्थान ॥१०॥*
रजोगुण तथा सत्वगुण की मिश्रित वृत्त्यों वाला व्यक्ति जप, तप, तीर्थ यात्रा, अनेक प्रकार के दान, योग, यज्ञ, यम-नियम, व्रत स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा आदि नाना प्रकार की कामनाएँ करता रहता है ॥१०॥
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*बहुत भांति की कामना, इन्द्र लोक की चाहि ।*
*सत्य लोक जो पाइये, तहां बहुत सुख आहि ॥११॥*
इस प्रकार वह व्यक्ति नानाविध कामनाएँ करता रहता है । वह चाहता है कि किसी तरह स्वर्गलोक मिल जाता तो बड़ा सुख मिलता ! अन्त में वह सत्यलोक की कामना करने लगता है, जहाँ सबसे अधिक सुख है ॥११॥
(क्रमशः)

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