परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 6 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/५०-२)


#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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**अन्य लग्न व्यभिचार** 
पर पुरुषा रत बाँझणी, जानैं जे फल होइ । 
जन्म बिगोवे आपना, दादू निष्फल सोइ ॥ ४९ ॥ 
४९ - ५० में अन्य लग्न व्यभिचार से जीवन निष्फल जाता है, यह कह रहे हैं - जैसे कोई नारी स्वयँ तो बन्ध्या हो और अपने पति को नपुँसक जान कर पुत्रोत्पत्ति के लिए पर - पुरुष का संग करे, तब जो फल होता है, सो सब जानते ही हैं, अर्थात् पुत्र भी नहीं होता और पतिव्रत - धर्म भी नष्ट होता है । वैसे ही सकाम, भक्ति वैराग्यादि साधन तो स्वयँ करता है और निर्गुण ब्रह्म को असमर्थ जान कर अन्य देवी - देवादि की उपासना करता है, तब ब्रह्म - ज्ञान रूप फल से वँचित रह कर वह अपने जन्म को भी निष्फल ही खो देता है ।
दादू तज भरतार को, पर पुरुषा रत होइ । 
ऐसी सेवा सब करैं, राम न जानैं सोइ ॥५०॥ 
जैसे जारिणी नारी अपने पति को त्याग कर पर - पुरुष से प्रेम करती है तब पतिव्रत - धर्म बिना, उसकी सेवा और उसका मनुष्य जन्म व्यर्थ ही जाता है, उसे पति - लोक नहीं मिलता । वैसे ही भगवान् को त्याग कर देवी - देवादि की सेवा सभी सकामी करते हैं किन्तु देवी - देवादि की सेवा से राम के स्वरूप को वे नहीं जान पाते और अपना अमूल्य नर - तन व्यर्थ ही खो देते हैं । 
*पतिव्रत* 
नारी सेवक तब लगै, जब लग सांई पास । 
दादू परसे आन को, ताकी कैसी आस ॥५१॥ 
५१ में कहते हैं - निष्काम पतिव्रत बिना सच्चा भक्त होने की क्या आशा है ? नारी पतिव्रता तब तक ही कहलाती है जब तक अपने पति की सेवा में तत्पर रह कर पति के पास रहती है और जब अन्य पुरुष से मिलती है तब उसके पतिव्रता होने की क्या आशा है ? वैसे ही भक्त वह है, जो जीवन पर्यन्त भगवान् का ही चिन्तन करता है । जो अन्य देवी - देवादि की उपासना में रत है, उसके भक्त होने की क्या आशा है ? 
(क्रमशः)

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