परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 25 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/१८-९) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
*= उपासनाकाण्ड/ज्ञानकाण्ड की उपयोगिता =*
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*पीछै बाधा कछु नहीं, प्रेम मगन जब होइ ।*
*नवधा ऊ तब बकि रहै, सुधि बुधि रहै न कोइ  ॥१८॥*
इस नवधा भक्ति का अभ्यास करते-करते एक दिन ऐसा आ जाता है कि साधक प्रेममग्न होकर भगवान् के सामने अपने को समर्पित कर डालता है । उस समय नवधा-भक्ति(जो भक्ति का साधारण रूप है) शिथिल हो जाती है, और उसका स्थान प्रेमा भक्ति ले लेती है । उस समय साधक को अपने शरीर की ओर कोई ध्यान नहीं रहता । वह क्या खाता है, क्या पीता है, कब सोता है, कहाँ सोता है, कब बैठता है, कहाँ बैठता है आदि लौकिक बातों की तरफ उसका ध्यान बिलकुल ध्यान नहीं रहता ॥१८॥ 
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*= ज्ञानकाण्ड की उपयोगिता =*
*तब ही प्रगटै ज्ञान फल, समझै अपनौं रूप ।*
*चिदानन्द चैतन्य घन, व्यापक ब्रह्म अनूप ॥१९॥*
(कवि अब प्रसंगोपात्त ज्ञानकाण्ड का वर्णन करेंगे--) इस प्रेमा भक्ति की निरन्तर साधना से एक दिन ऐसा आ जाता है कि साधक वेद के ज्ञानकाण्ड के मन्त्रवचनों के अभ्यास में लग जाता है और इन वचनों का अभ्यास(श्रवण, मनन, निदिध्यासन) करते-करते उसे स्व-रूप का भान हो जाता है । यही ज्ञान का फल है जो उसे प्राप्त हो जाता है । और वह अपने को चिदानन्द, चैतन्यस्वरूप, अनुपम ब्रह्म समझ लेता है ॥१९॥
(क्रमशः)

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