परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शुक्रवार, 24 मार्च 2017

= १४८ =

卐 सत्यराम सा 卐
साचा राता सांच सौं, झूठा राता झूठ ।
दादू न्याय निबेरिये, सब साधों को पूछ ॥ 
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साभार ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi

*#### बिना बांह का कुर्ता ####*

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दादा कोण्डदेव शिवाजी के प्रमुख दरबारियों में एक थे । वह शिवाजी के शस्त्र-विद्या के गुरू और सलाहकार भी थे । शिवाजी दादा कोण्डदेव का बहुत सम्मान करते थे ।एक बार गर्मी के दिनों में कोण्डदेव दरबार से अपने निवास लौट रहे थे । रास्ता राज-उद्यान से होकर निकलता था। उद्यान से गुजरते हुवे उनकी नजर आमों से लदे पेङो की और गयी । रसीले आम देखकर उनका मन ललचा उठा और उन्होने चटनी के लिये कुछ आम तौङ लिये । घर पर पत्नि ने पूछा, "ये आम को कहां से मिले ?" दादा कोण्डदेव बोले, 'राज-उद्यान से तोङे है ।' उनकी पत्नि बोली, "क्या आपने आम तोङने से पहले आज्ञा ली थी।" यह सुनकर कोण्डदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ । उन्होंने प्रायश्चित के लिये अपनी पत्नि से सलाह मांगी, तो वह बोली, "जो हाथ चोरी के लिए बढे, उन्हें राष्ट्रहित को देखते हुए काट कर अलग कर देना चाहिये । जिससे वह गल्ती दुबारा न हो । 
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इतना सुनते ही कोण्डदेव ने घर में रखी तलवार निकाल कर ज्यों ही हाथ काटने चाहा, उनकी पत्नि ने उन्हें पकड़ लिया और बोली, "आपके ये हाथ आपके न होकर राष्ट्र के हैं । प्रण कीजिए कि आज के बाद इनसे होने वाले सभी कार्य राष्ट्रहित में ही होंगे ।" इस पर दादा कोण्डदेव बोले, 'पर ये कैसे पता चलेगा कि इन हाथों ने अपराध किया था ।' पत्नि बोली, "यदि ऐसा है तो कुर्ते की बांह काटकर प्रायश्चित संभव है ।" अगले दिन जब वे बिना बांह का कुर्ता पहनकर दरबार गए तो लोगों में हंसी की लहर दौङ गई । कारण पूछने पर उन्होंनें सारी बात बता दी । इस घटना से सभी दरबारी बहुत प्रभावित हुए । इसके बाद दादा कोण्डदेव ने जीवन भर बांह वाला कुर्ता नहीं पहना, ताकि इस भूल की याद सदा बनी रहे और दोबारा ऐसी गलती न हो ।
#### राज.पत्रिका के सौज्यन से####
^^^सत्यराम सा^^^

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