परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

सोमवार, 13 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/१९-२०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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*स्वप्नै मैं यम नियम व्रत, स्वप्नै तीरथ दान ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, एक सत्य भगवान ॥१९॥*
कोई स्वप्न में यम, नियम, व्रत, तीर्थयात्रा, दान आदि करता है, जागने पर वह समझ जाता है कि मेरी यह सब स्वप्न की मिथ्या कल्पना थी । सत्य तो एक मात्र परब्रह्म परमात्मा है जहाँ स्वप्नावस्था(असत्य) है ही नहीं ॥१९॥ 
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*स्वप्नैं दौड्यो द्वारिका, स्वप्नै में जगनाथ ।*
*सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नां को संग न साथ ॥२०॥* 
स्वप्न में कोई द्वारिका तीर्थ जा पहुँचे, दूसरा कोई जगन्नाथपुरी चला जाय, जागने पर वे दोनों जान जाते हैं कि वे कहीं नहीं गये । वे अपने घर की खाट पर अकेले पड़े थे उनके साथ कोई नहीं था ॥२०॥ 
(क्रमशः)

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