परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*४ - सांख्य* 
“पांच तत्त्व के पांच हैं, आठ तत्त्व के आठ । 
आठ तत्त्व का एक है, तहां निरंजन हाट ॥” 
*आठ तत्त्व - १. शब्द २. स्पर्श ३. रूप ४. रस ५. गंध ६. मन ७. बुद्धि ८. अहंकार ।* उक्त आठ को ही गीता में अपरा प्रकृति कहा है । सर्व. द. सं. में इनको ही पुर्यष्ट कहा है - 
“शब्दः स्पर्श स्तथारूपं गंधस्तथैवच । 
मनो बुद्धिरहंकार: पुर्यष्टकमुदाहृतम् ॥ 
*योगवासिष्ठ में अष्ट पुरी ये कही हैं -* 
*१. वासना २. भूतसूक्ष्म ३. कर्म ४. विद्या. पंच ५. ज्ञानेन्द्रिय ६. पंच कर्मेन्द्रिय ७. मन ८. बुद्धि,* किसी भी प्रकार माने आठ पुरियों में लिंग शरीर के तत्त्वों का समावेश हो जाता है । इस प्रकार एक ही साखी में स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर, पंच तन्मात्राओं से पंच महाभूतों की उत्पत्ति, बुद्धि आदि आठों तत्त्वों का वर्णन, स्थूल शरीर के बिना सूक्ष्म शरीर का भोग में समर्थ न होना तथा सूक्ष्म शरीर में चैतन्य की उपलब्धि, इतने विषयों का उक्त साखी में संनिवेश किया गया है । 
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इसी प्रकार सांख्य दर्शन की आठ सिद्धियों व नौ निधियों का भी सामान्य रूप से कायाबेली ग्रंथ में कथन किया है - 
“काया मांही नव निधि होय, 
काया मांहीं अष्ट सिधि सोय ॥” 
उक्त प्रकार से सांख्य दर्शन का वर्णन भी वाणी रूप में सूत्र रूप से मिलता है । 
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*५ - योग -* 
“मन सुस्थिर कर लीजे नाम, 
दादू कहै तहां ही राम ।” 
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*पांच यम =*
*१. अहिंसा -* 
“निर्वेरी सब जीव से, संत जन सोई । 
दादू एकै आतमा, वैरी नहिं कोई ॥” 
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*२. सत्य -* 
सांई सत संतोष दे, भाव भक्ति विश्वास । 
सदक सबूरी साँच दे, मांगे दादू दास ॥ 
उक्त साखी में - सत्य, संतोष का समावेश है । इसी प्रकार स्थान स्थान पर दादू वाणी में यम तथा निमयों का वर्णन मिलता है । जैसे अहिंसा और सत्य का ऊपर की साखितों में संकेत है, वैसे ही अस्तेय, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह का भी दादू वाणी में स्थान - स्थान पर संकेत मिलता है । 
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*पांच नियम -*
*१ - शौच -* 
“शरीर सरोवर रामजल, मांही संयम सार ।
दादू सहजैं सब गये, मनके मैल विकार ॥” 
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*२. संतोष -* 
“दादू सहजैं सहजैं होयगा, जे कुछ रचिया राम । 
काहे को कल्पे मरे, दुखी होत बेकाम ॥” 
युक्त दो नियमों के समान ही - तप, स्वाध्याय और ईश्वर भक्ति स्थान - स्थान पर दादू वाणी में मिलते है । यहां केवल संकेत मात्र ही दिये जा रहे हैं । सर्व विषयों के उदाहरण देने से ग्रन्थ वृद्धि का भय है । 
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*आसन -* 
“मन का आसन जे जिव जाने, तो ठौर ठौर सब सूझे । 
पंचों आन एक घर राखे, तब अगम निगम सब बूझे ॥” 
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*प्राणायम -* 
“गंगा उलटी फेरिकर, जमुना मांहीं आण ॥”
रसायन योग - “दादू राम रसायन नित चवे” 
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*प्रत्याहार -*
“यहु मन बरजी बावरे, घट में राखी घेरि । 
मन हस्ती माता बहै, अंकुश दे दे फेरि ॥” 

*धारणा -* 
“जहं आतम तहं राम है, सकल रह्या भरपूर । 
अन्तरगति ल्यौ लाय रहु, दादू सेवक सूर ॥” 
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*अनाहत नाद -*
“अनहद बाजे बाजिये, अमरापुरी निवास । 
ज्योति स्वरूपी जगमगे, कोई निरखे निज दास ॥ 
दादू शब्द अनाहत हम सुन्या, नख शिख सकल शरीर ।
सब घट हरि - हरि होत है, सहजैं ही मन थीर ॥” 
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*राजयोग -* 
“थोरे - थोरे हठ किये, रहेगा ल्यौ लाय । 
जब लागा उनमनी से, तब मन कहीं न जाय ॥” 
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*शून्य मंडल -* 
“दादू काया अन्तर पायिगा, अनहद वेणु बजाय । 
सहजैं आप लखाइया, शून्य मंडल में जाय ॥” 
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*त्रिकुटी -*
“प्राण पवन मन मणि बसे, त्रिकुटी केरे संधि । 
पांचों इन्द्रिय पीव से, ले चरणों में बंधि ॥ 
दादू काय अन्तर पाइया, त्रिकुटी केरे तीर । 
सहजैं आप लखाइया, व्यापा सकल शरीर ॥” 
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*योग सिद्धि -*
“हिरदै राम रहै जा जनके, ताको ऊरा कौन कहै । 
अठ सिधि नव निधि ताके आगे, सन्मुख सदा रहै ॥” 
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*त्रिवेणी -* 
“ऐसा ज्ञान कथो नर ज्ञानी, 
इहिं घर होय सहज सुख जानी ॥ टेक ॥ 
गंग जमुन तहं नीर नहाय, 
सुषुमन नारी रंग लगाय ॥ १ ॥ 
आप तेज तन रह्यो समाय, 
मैं बलि ताकी देखूं अघाय ॥ २ ॥ 
वास निरंतर सो समझाय, 
बिन नैंनहुँ देख तहं जाय ॥ ३ ॥ 
दादू रे यहु अगम अपार, 
सो धन मेरे अधर अधार ॥ ४ ॥ 
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*ध्यान -* 
“पुहप प्रेम बरसे सदा, हरि जन खेलैं फाग । 
ऐसा कौतुक देखिये, दादू मोटे भाग ॥” 
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*सविकल्प समाधि -* 
“अमृत धारा देखिये, पारब्रह्म वर्षन्त । 
तेज पुंज झिलमिल झरे, को साधू जन पीवन्त ॥” 
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*निर्विकल्प समाधि -* 
“दादू जब दिल मिला दयालु से, तब अन्तर कछु नांहिं । 
ज्यों पाला पाणी मिल्या, त्यों हरि जन हरि मांहिं ॥ 
तन मन अपना हाथ कर, ताहि से ल्यौ लाय । 
दादू निर्गुण राम से, ज्यों जल जलहिं समाय ॥” 
(क्रमशः)

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