परमगुरु ब्रह्मर्षि श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी

रविवार, 9 अप्रैल 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/२०-१) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
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*कनक पात्र मैं रहत है, ज्यौं सिंहनि कौ दुद्ध ।*
*ज्ञान तहां हीं ठाहरै, हृदय होइ जब शुद्ध ॥२०॥*
जैसे शेरनी का दूध सुवर्णपात्र में ही ठहरता है, उसी तरह गुरुपदिष्ट ज्ञान किसी श्रद्धालु विश्वासी शुद्ध हृदय में ही जम पाता है ॥२०॥
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*= जीवन्मुक्त का लक्ष्ण =*
*शुद्ध हृदय जाकौ भयौ, उहै कृतारथ जांन ।*
*सोई जीवन मुक्त है, सुन्दर कहत बखांन ॥२१॥*
॥ समाप्तोऽयं उक्त अनूप ग्रन्थः ॥
जिस व्यक्ति का हृदय शुद्ध(सात्विकभावापन्न) हो गया, वह एक न एक दिन गुरुपदेश से कृतकृत्य हो ही जायगा - ऐसा समझ लीजिये । महाराज श्रीसुन्दरदासजी कहते हैं - ऐसा शुद्ध हृदय व्यक्ति ही(ब्रह्मज्ञान-प्राप्ति का अधिकारी बनकर) जीवन्मुक्त हो पाता है ॥२१॥
॥ यह उक्त अनूप ग्रन्थ समाप्त हुआ ॥
(क्रमशः)

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